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एकसाथ दोनों जानते हैं-स्वपर।
साधकदशा है और भेदज्ञानकी परिणति है। उसकी परिणति-ज्ञानकी परिणति तो यह मैं हूँ और यह पर है, मैं और पर, मैं और पर, ऐसी ज्ञानकी परिणति तो चालू ही है। लब्धात्मक ज्ञान यानी वह जो अनादिका क्षयोपशम, अमुक उघाड है वह नहीं। परन्तु उसे तो प्रगट हुआ है लब्ध और उपयोगात्मक। प्रगट भेदज्ञानकी धारा, लब्ध भी प्रगट है। वह कहीं अनादिका लब्ध होता है ऐसा लब्ध नहीं है। अनादिका शक्तिरूप अथवा अमुक क्षयोपशम जीवको प्रगट हो, फिर थोडा उपयोग और फिर थोडा लब्ध रहा करे, वह नहीं।
यह लब्ध तो प्रगट होकर लब्ध हुआ है। उपयोगात्मक ज्ञान अन्य-अन्य ज्ञेयमें जाय। प्रगट होकर लब्ध हुआ। ऐसी ज्ञानकी स्वपरप्रकाशककी परिणति है। यह मैं और यह पर, यह मैं और यह पर, ऐसी ज्ञानकी परिणतिकी धारा सहज (चलती है)। भेदज्ञानकी परिणतिकी धारा वह आंशिक स्वपरप्रकाशक है। भले उपयोगात्मक नहीं है, परन्तु लब्धात्मक भेदज्ञानकी परिणतिमें स्वपरपना आ ही जाता है। भेदज्ञानकी परिणतिमें यह मैं और यह पर, यह मैं हूँ, यह नहीं हूँ, यह हूँ, यह नहीं, ऐसी भेदज्ञानकी परिणतिकी धारा चलती ही रहती है। वह परिणति है। लब्ध है वह... भेदज्ञानकी धारा, वेदनरूप परिणति होती है। स्वानुभूति नहीं, परन्तु उसे भेदज्ञानका अमुक प्रकारकी शक्ति प्रगट हुयी है। भेदज्ञानकी परिणतिकी वह शक्ति है। अमुक शान्तिकी धारा प्रगट हुयी है। उसमें साथमें स्वपरप्रकाशक ज्ञान परिणतिरूपसे आ जाता है।
केवलज्ञानी कहाँ उपयोग नहीं रखते हैं। परिणतिरूपसे ज्ञान उनका सहज हो गया है, परिणतिरूप हो गया है। एकके बाद एक उपयोग नहीं रखना पडता। सहज उपयोगात्मक हो गया है। एकसरीखा उपयोग हो गया है। गुरुदेव कोई अपेक्षासे उसे परिणति कहते थे। क्योंकि एकके बाद एक उपयोगका क्रम नहीं है। परिणतिरूप हो गया है। केवलज्ञान अक्रम (है)।
.. भेदज्ञानकी परिणति है। भेदज्ञानकी परिणतिमें क्या जाना? स्व और पर दोनों। भेदज्ञानकी परिणतिमें स्व-पर दोनों छद्मस्थको आ जाता है। उपयोगात्मक भले एकके बाद एक जाने। परिणति एक ओर पडी है ऐसा नहीं है, कार्य करती है उसकी परिणति। जिसका कोई वेदन नहीं है (ऐसा नहीं है)। उसका ख्याल नहीं आता कि अमुक क्षयोपशम खुला है और थोडा लब्ध और थोडा उपयोग है, ऐसा नहीं है। उसका तो उसे वेदन नहीं है। ये तो उसका वेदन है। भेदज्ञानकी परिणति है।
... यह मैं हूँ और यह नहीं हूँ, यह मैं हूँ और यह नहीं हूँ। उघाड उसका कार्य करता है। ऐसा उसका उघाड है। क्षण-क्षणमें सहज है। इसलिये कहते हैं, आंशिकरूपसे