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भी प्राप्त करेगा। तो उतना आयुष्यका लंबा काल और दूसरे भवमें भी अमुक काल जाय, फिर संस्कारकी जागृति हो। तो उतनी लंबी सम्यक सन्मुखता (रहती है)?
समाधानः- अन्दर संस्कार पडे हैं न कि मैं ज्ञायक हूँ, यह मैं नहीं हूँ। ऐसी ज्ञायककी अन्दर गहरी रुचि और प्रतीति हुयी है। ज्ञायक, एक ज्ञायकके सिवा मुझे कुछ नहीं चाहिये और मैं ज्ञायक ही हूँ। ज्ञायककी उसे महिमा आयी है, ज्ञायककी अपूर्वता लगती है। ज्ञायक माने उसे रूखा नहीं है, परन्तु अपूर्व रुचिपूर्वक उसे ज्ञायक ग्रहण हुआ है। तो उसे अंतरमें जो संस्कार पडे हैं, परिणति अभी भेदज्ञानरूप सहज नहीं हुयी है, परन्तु ऐसे संस्कार पडे हैं तो भले ही दूसरे भवमें जाय तो अंतरमें- से स्फूरित हो जाते हैं।
मुमुक्षुः- तब तकका का काल सम्यक सन्मुखताका कहलायगा?
समाधानः- वह सम्यकत्व सन्मुख है। भले अभी उसे भेदज्ञानकी परिणति चालू नहीं हुयी है, परन्तु अभी सन्मुखता है। सन्मुखता अभी कार्यरूप नहीं हुयी है। कारण, यथार्थ कारण कारणरूप रह गया है, कार्य आनेमें देर लगे।
मुमुक्षुः- सचमुचमें उसे लगन लगे तो छः मासमें हो जाय। और ऐसे संस्कार पडे हो तो लंबा काल निकल जाय।
समाधानः- वह उत्कृष्टकी अपेक्षासे बात है।
मुमुक्षुः- दोनों अपेक्षा भिन्न-भिन्न हैं।
समाधानः- वह उग्र पुरुषार्थ करे तो पहले तो अंतर्मुहूर्तमें हो जाय। परन्तु उससे अमुक प्रकारसे करे और एक धारावाही प्रयत्न करता है तो ऐसे छः महिने (कहा)।
मुमक्षुः- धारावाही प्रयत्न चले। समाधानः- उग्र प्रयत्न हो तो छः महिने (लगते हैं)। और ये तो अभी मन्द- मन्द पुरुषार्थ है, इसलिये लंबा समय लगता है। अपना पुरुषार्थ चालू ही है। वह एकदम उग्र करे तो अंतर्मुहूर्तमें जाता है। ये अमुक प्रकारसे करे तो छः महिने लगते हैं। और वह जिसे संस्कार पडे, लेकिन वह ऐसा पुरुषार्थ नहीं करता है। इसलिये उसे संस्कार पडे हैं, कार्यरूप नहीं हुए हैं। ... पुरुषार्थ करता नहीं है, इसलिये लंबा काल निकल जाता है। करे, मन्द करे, ऐसा करते-करते उसे लंबा काल निकल जाता है।
मुमुक्षुः- छोटे बालककी भाँति, खडे होना सीखे, गिरे, फिरसे खडा हो..
समाधानः- हाँ, वैसे करता है। .. काल ऐसे ही चला जाता है। करता नहीं है। उत्कृष्टमें उत्कृष्ट इस तरह अर्ध पुदगल परावर्तन चला जाय। परन्तु अन्द संस्कार पडे हैं न। ऐसे पीठ नहीं फेरी है, लेकिन मन्दता है तो दूसरे भवमें भी प्राप्त होता है।
मुमुक्षुः- हमें तो ऐसा था कि ब्रह्मचारी बहनोंने..