Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

८६

समाधानः- सूचना दी हो।

मुमुक्षुः- थ्री डायमेन्शनसे गहराई हो, माताजी! एकदम मानो कितना दूर-दूर हो, होलमें मानों गुरुदेव दूर बैठे हों, इतना बडा लगे। चित्र छोटा हो, परन्तु अन्दर गहराई बहुत लगे। दूरसे प्रवचनमें बैठे हों और देखे तो ये क्या! साक्षात दूरसे गुरुदेव प्रवचन दे रहे हो। धोध और किरणें...

मुमुक्षुः- जो धोधका है वह बहुत सुन्दर था।

समाधानः- सूचना दी हो, फिर सबने किया। पेइन्टरने (किया)। इतने सालसे कोई मेल नहीं खा रहा था, इस साल मेल बैठ गया।

मुमुक्षुः- प्रिन्टरने यहाँ रहकर ही किया। बहुत सुन्दर।

समाधानः- .. करवाया था। करते-करते अच्छा हो जाता है। फिर कहा, ऐसा कुछ करते हैं। गत वर्षसे हो रहा था, इस साल हो गया। .. काम करते रहते हैं। ऐसे तो कितने प्रसंग बने हों। ये तो संक्षिप्तमें कैसे आ जाय (उतना)। सब तो चित्रित नहीं कर सकते। गुरुदेवने कितने विहार किये हैं, कोई विद्वान आये हों, कुछ-कुछ प्रसंग बने हों, सब तो चित्रित नहीं कर सकते। संक्षेपमें आ जाय, उस प्रकारसे खास- खास (लिये हैं)।

... सब प्रसंग चित्रित नहीं कर सकते। दीक्षाके बाद तुरन्त परिवर्तनका चित्र लिया है। गुरुदेव पढते हैं।

मुमुक्षुः- धूली निशाल। आपने सब समाविष्ट कर लिया है।

समाधानः- गुरुदेव थोडा फिरे हैं, बादमें उन्होंने नक्की किया। बोटाद संप्रदायमें हीराजी महाराजके पास दीक्षा लेनेका (निश्चित किया)।

मुमुक्षुः- ट्रेईन रखकर आपने बहुत अच्छा दिखाया है। फिरते हैं।

समाधानः- गुरुदेवने कितनो बरसों तक वाणीकी वर्षा की है। मूसलाधार वाणी बरसायी है। इसलिये पानीका धोध उसमें बताया है। वह कुछ हाथसे नहीं करना होता है, सूचना देनी होती है। तत्त्वके भी आये और सब आये। गुरुदेवके प्रतापसे सब होता है।

मुमुक्षुः- एक ओरसे भावनाका उल्लास बताना और दूसरी ओर ऐसा कहना काले सर्प जैसा दिखता है।

समाधानः- .. जो राग हो वह तो देव-गुरु-शास्त्रकी ओर होता है। (मुनिराज) छठवें-सातवें गुणस्थानमें झूलते हैं। तो भी बाहर आते हैं तो शास्त्रकी रचना करते हैं, श्रुतका चिंतवन करते हैं और भगवानकी भक्तिके श्लोक रचते हैं। पद्मनंदी आचार्यने कैसे श्लोक रचे हैं! प्रभु! आपकी भक्ति करते हुए इन्द्रने हाथ ऊपर किये तो बादलोंके दो टूकडे हो गये। ऐसा श्लोक आता है।