Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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जो परमपारिणामिकभावस्वरूप अनादिअनन्त ज्ञायक हूँ। उस ज्ञायककी प्रतीति करनी और उसके साथ भेदज्ञान अर्थात मैं चैतन्य ज्ञायक हूँ और परपदार्थसे भिन्न, विभावसे भिन्न ऐसा मैं आत्मा हूँ। मेरा स्वभाव भिन्न है। उसमें भेदज्ञान और ज्ञायककी प्रतीति दोनों साथमें आ जाते हैं। उसमें कोई अलग बात नहीं आती है, दोनों एक ही बात आती है।

मुमुक्षुः- पात्र शिष्यके मुख्य-मुख्य लक्षण सम्बन्धित थोडा मार्गदर्शन दीजिये।

समाधानः- पात्र हो तो उसे अंतरसे उसे आत्माकी लगन ही लगी हो। मुझे एक चैतन्य चाहिये, दूसरा कुछ नहीं चाहिये। आत्माका ही जिसे प्रयोजन है। प्रत्येक कार्यमें उसे आत्माका प्रयोजन होता है। अन्य सब प्रयोजन उसे गौण हो जाते हैं। एक आत्माको मुख्य रखकर उसके सब कार्य होते हैं। शुभभावके कार्य हो तो उसे आत्माका प्रयोजन होता है। दूसरा बाहरका कोई प्रयोजन उसे नहीं होता।

उसे शुभभावना हो तो देव-गुरु-शास्त्रकी प्रभावना कैसे हो, ऐसा शुभभावमें उसे आता है। आत्माका प्रयोजन उसे साथमें होता है, दूसरा कोई प्रयोजन नहीं होता। उसमें कोई लौकिक प्रयोजन या दूसरा कोई प्रयोजन साथमें नहीं होता। लौकिक प्रयोजनसे वह बिलकूल न्यारा (होता है)। उसे आत्माकी ही लगन लगी होती है। उसे लौकिका, बाहरका या बडप्पन या बाहरका कोई प्रयोजन नहीं होता। मेरे आत्माको कैसे लाभ हो, यह एक ही प्रयोजन आत्मार्थीको होता है।

जिसने साधना की, ऐेसे गुरु, ऐसे उपकारी गुरु, जिनेन्द्र देव, शास्त्रकी प्रभावना कैसे हो? जिसे स्वयंकी प्रीति है, ऐसा जिसने मार्गदर्शन दिया, जिन्होंने मार्ग बताया, उनका परम उपकार है। उनकी प्रभावना कैसे हो, ऐसा हेतु होता है। बाकी दूसरा कोई हेतु उसे होता नहीं। पात्र जीवका ऐसा लक्षण होता है। दूसरा सब उस उसे गौण हो जाता है, एक आत्मा ही मुख्य रहता है।

मुमुक्षुः- संस्थाके कार्य करनेका प्रयोजन?

समाधानः- देव-गुरु-शास्त्रकी प्रभावना होती हो और उसको स्वयंको विकल्प आता हो तो उसमें जुडता है। जुडता है। देव-गुरु-शास्त्रकी प्रभावना हेतु और निजात्मा हेतु जुडता है। दूसरा कोई प्रयोजन नहीं होता।

मुमुक्षुः- उसमें भी मुख्यपने तो आत्मा ही मुख्य होता है।

समाधानः- आत्मा ही मुख्य होता है। मेरे आत्माको कैसे (लाभ हो)? निजात्माको कैसे संस्कार डले? आत्माके संस्कार कैसे दृढ हो? मैं चैतन्य न्यारा हूँ, ऐसा ही उसे प्रयोजन होता है। उसे धर्मकी प्रीति है इसलिये धर्मकी प्रभावना कैसे हो? गुरुकी कैसे प्रभावना हो? उनकी शोभा हो, उनको लोग जाने, शुभभावमेंं उसे ऐसा विकल्प आता