Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1345 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-५)

११२ है। जिसकी स्वयंको प्रीति है, स्वयंको जिस स्वभावकी प्रीति है, जो गुुरुने मार्ग बताया, उस गुरु पर भक्ति आये बिना नहीं रहती। इसलिये वह शुभकार्यमें जुडता है। परन्तु उसे हेतु आत्माका ही होता है।

मुमुक्षुः- किसीको ऐसा हो जाय कि संस्थाकी मुख्यता हो जाय और आत्माकी गौणता हो जाय, तो वह पात्रतामें आता है?

समाधानः- आत्माकी तो मुख्यता ही होनी चाहिये।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!