Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1350 of 1906

 

ट्रेक-

२०७

११७

समाधानः- हाँ, वींछिया आयी थी। नारणभाईने दीक्षा ली, उसके बाद उन्होंने समाधि आदि कुछ किया था।

मुमुक्षुः- हाँ, संथारा करनेवाले थे।

समाधानः- हाँ, तब।

मुमुक्षुः- उस वक्त आप पधारे थे?

समाधानः- हाँ। तब आयी थी। बाकी पहले नारणभाईकी दीक्षा थी न? वढवाणमें दीक्षा थी न, उस वक्त गुरुदेवके दर्शन हुए थे। उसके पहले हिम्मतभाई आदि सब बात करते थे।

मुमुक्षुः- उस समय प्रवचनमें सम्यग्दर्शनकी बात आती थी?

समाधानः- हाँ, सम्यग्दर्शनकी बात आती थी। मन, वचन, कायासे उस पार विराजता है, स्वानुभूति होती है। तब पंद्रह सालकी उम्र थी। उस समय। वढवाणमें गुरुदेवके दर्शन हुए उस समय।

मुमुक्षुः- पहली बार?

समाधानः- हाँ, पहली बार। इनकी वाणी ही अलग है, ये अलग कहते हैं और आत्माका स्वरूप बता रहे हैं। बात तो पहले हिम्मतभाई और वजुभाईके पाससे सुनी थी, परन्तु दर्शन नहीं किये थे। वे तो गुरुदेवके प्रवचनमें-से लिखते थे। पहले मैं कराँची रहती थी, इसलिये दर्शन नहीं हुए थे।

मुमुक्षुः- पहले तो वजुभाईने... गुरुदेवका प्रथम परिचय आपको? हिम्मतभाईसे पहले।

समाधानः- हाँ, उन्होंने नोट बूक लिखी थी। पूरी नोटबुक लिखी थी, अभी भी है। प्रवचन।

मुमुक्षुः- ऐसा, उस वक्त प्रवचनमें-से! मुमुक्षुः- मैं तो पढता था। परीक्षा देकर वे निवृत्त थे। अभी नौकरी नहीं मिली थी।

मुमुक्षुः- आप कहाँ पढते थे? मुमुक्षुः- मैं अहेमदाबादमें। उनका इन्जीनयरींग पूरा किया, अभी नौकरी नहीं मिली थी। पूरा चौमासा उन्हें नौकरी नहीं थी, इसलिये निवृत्त थे।

समाधानः- फिर उन्होंने कहा कि, यहाँ महाराज आये हैं, कुछ अलग बात करते हैं।

मुमुक्षुः- वे लिखते थे। महाराज आये हैं। ... कहते हैं, समकित अर्थात जैन धर्म सच्चा है और सामायिक, प्रतिक्रमण करते हैं, इसलिये पाँचवां गुणस्थान है। ये