११८ महाराज तो कहते हैं कि सिद्ध भगवान जैसा आनन्द आता है। न्यायसे विचारने पर सच्चा लगता है।
मुमुक्षुः- आपको गुरुदेवका परिचय कब हुआ? मुमुक्षुः- बस, फिर ... की छूट्टीयाँ होती है, दिवालीकी छूट्टी होती थी, तब जाते थे। भाईको उसके पहले .. कालमें भी परिचय हुआ था।
मुमुक्षुः- मूलमें पहले वहाँ-से शुरूआत की। बादमें आपको और बहिनको।
समाधानः- बादमें मैं आयी न। नारणभाईकी दीक्षाका प्रसंग था, तब दर्शन हुए। पंद्रह वर्षकी उम्रमें। बचपनसे कराँचीमें बडी हुयी न।
मुमुक्षुः- कराँचीमें आप चार साल रहे।
मुमुक्षुः- बडेको बडा लाभ और जल्दी लाभ मिला।
समाधानः- फिर गुरुदेव बोलते, उनका प्रवचन अलग था। इसलिये तुरन्त ही आश्चर्य लगता कि ये कुछ अलग ही कहते हैं। श्वेतांबर संप्रदायमेंं एक अक्षर बोले, बाकी सब ऊपरसे बोलते हों। उसमें तो अर्थ ऊपरसे करते हों।
मुमुक्षुः- गुरुदेव कहते थे कि, पूरा प्रवचन घर जाकर लिख लेते हैं। अक्षरशः। वह भावनगर?
समाधानः- हाँ।
मुमुक्षुः- वांकानेर आप बादमें गये?
समाधानः- वांकानेर बादमें। फिर तो मैं थोडा समय वढवाणमें रही, उसके बाद वांकानेर गयी।
मुमुक्षुः- भाईको उस वक्त भावनगरमें नौकरी थी। सबसे पहले अहेमदाबाद, फिर भावनगर, फिर वांकानेर।
समाधानः- भावनगरमें नौकरी थी न, इसलिये मैं वहाँ गयी थी।
मुमुक्षुः- हाँ, भाईको नौकरी वहाँ थी, इसलिये आप वांकानेर रहे। आप वहाँ नौकरी पर लगे तो वहाँ आये।
मुमुक्षुः- भावनगर, लींबडी, ... करवाते थे। मुमुक्षुः- हाँ, गुरुदेव कहते थे। बहिनको दूरसे देखा तबसे लगा कि ये शक्ति कुछ अलग है। गुरुदेव खुश हुए। गुरुदेवको ख्याल आ गया।
समाधानः- ... मेरे साथ चर्चा करते। इसलिये मुझे ऐसा लगता कि जहाँ जन्म लिया वह सच्चा नहीं होता। फिर विचार करके नक्की ऐसा ही होता था कि गुरुदेव जो कहते हैं, वही सच्चा है। आप भले कुछ भी कहो, परन्तु यही सत्य है। मुझे ऐसा ही नक्की होता था कि, आप यह सत्य, यह सत्य ऐसा कहो, लेकिन सत्य