....એવી રીતે ગુરુદેવશ્રીને અને આપને બરાબર સાંભળે તો જેને જે ત્રૃટી હોય તે આપના પરિચયથી રહે નહીં, આપના પાસેથી બીજો પ્રકાર જાણવાનો મળે ત્યારે સંધી થતી હોય તેમ લાગે છે 0 Play ....एवी रीते गुरुदेवश्रीने अने आपने बराबर सांभळे तो जेने जे त्रृटी होय ते आपना परिचयथी रहे नहीं, आपना पासेथी बीजो प्रकार जाणवानो मळे त्यारे संधी थती होय तेम लागे छे 0 Play
પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રી આનંદ માટે પુરણપુરીનો દ્રષ્ટાંત આપતા–એ આનંદ અમને કંઈક ખબર પડે તેવું ભાષામાં આવે? 1:15 Play पूज्य गुरुदेवश्री आनंद माटे पुरणपुरीनो द्रष्टांत आपता–ए आनंद अमने कंईक खबर पडे तेवुं भाषामां आवे? 1:15 Play
ચૈતન્ય મારો દેવ છે તેને જ હું દેખું છું, બીજું મને કાંઈ દેખાતું જ નથી તેનો શું અર્થ છે? 3:00 Play चैतन्य मारो देव छे तेने ज हुं देखुं छुं, बीजुं मने कांई देखातुं ज नथी तेनो शुं अर्थ छे? 3:00 Play
એમ આવે છે વિભાવ પરિણામ વખતે તારામાં નિર્મળતા પડી છે પણ તું વિભાવમાં તન્મય થઈ રહ્યો છે 4:50 Play एम आवे छे विभाव परिणाम वखते तारामां निर्मळता पडी छे पण तुं विभावमां तन्मय थई रह्यो छे 4:50 Play
અજ્ઞાની હોય તેને અસ્તિત્વનો ખ્યાલ આવી શકે? 6:00 Play अज्ञानी होय तेने अस्तित्वनो ख्याल आवी शके? 6:00 Play
‘જ્ઞાન ઉપરથી જ્ઞાયક ઉપર જવું’ કેવી રીતે? 6:55 Play ‘ज्ञान उपरथी ज्ञायक उपर जवुं’ केवी रीते? 6:55 Play
પ્રતીતિમાં અસ્તિત્વનો ખ્યાલ આવે કે જ્ઞાયકનો ખ્યાલ આવે? 9:25 Play प्रतीतिमां अस्तित्वनो ख्याल आवे के ज्ञायकनो ख्याल आवे? 9:25 Play
‘કળ સુઝી જાય તો માર્ગ મળી જાય’ તેમાં કળ એટલે શું? 9:45 Play ‘कळ सुझी जाय तो मार्ग मळी जाय’ तेमां कळ एटले शुं? 9:45 Play
આપ બોલો છો ત્યારે તો એમ લાગે છે કે એકદમ સહેલું હશે? બાકી અઘરું લાગે છે? 10:40 Play आप बोलो छो त्यारे तो एम लागे छे के एकदम सहेलुं हशे? बाकी अघरुं लागे छे? 10:40 Play
કોઈવાર તો અંતરમાં ઢગલાને ઢગલા થઈ જાય અને કયારેક સહજ હોય તેમ રહે તે બેનો આંતરો શું છે? 12:50 Play कोईवार तो अंतरमां ढगलाने ढगला थई जाय अने कयारेक सहज होय तेम रहे ते बेनो आंतरो शुं छे? 12:50 Play
‘હું છું’ એવું પોતાને પોતાનું અસ્તિત્વનું જોર આવે તેમાં ‘છું’ તેમાં કેવો છું? કેવડો છું? એવું કાંઈ નહીં? 14:30 Play ‘हुं छुं’ एवुं पोताने पोतानुं अस्तित्वनुं जोर आवे तेमां ‘छुं’ तेमां केवो छुं? केवडो छुं? एवुं कांई नहीं? 14:30 Play
मुमुक्षुः- आज चर्चा सुनते समय मनमें एक विचार आ गया कि जैसे समयसारकेसाथ प्रवचनसारका मेल है। तो ... उसका सच्चा ज्ञान बराबर ज्ञानप्रधान .... । ऐसे गुरुदेव और आपको दोनोंको सुने तो उसे जो चाहिये, जो क्षति हो तो वह आपके परिचयसे उसे स्पष्ट हो। दोनोंका सुमेल हो ऐसा लगे। गुरुदेवके पास बहुत सुना है, फिर भी आपसे जब दूसरा प्रकार जाननेको मिले तब मानों सन्धि होती हो, ऐसा लगे।
समाधानः- ... दृष्टि-ज्ञानकी सन्धि आती थी। परन्तु पकडना (कठिन पडताथा)। आदमीकी जैसी दृष्टि हो, वैसा पकडे।
मुमुक्षुः- दृष्टिका विषय और ज्ञानका विषय, दोनोंके मेलमें बहुत सूक्ष्मता है।
समाधानः- उसमें भूल हो ऐसा है।
मुमुक्षुः- आज तो बहुत सुन्दर (स्पष्टीकरण आया)।
समाधानः- दृष्टान्त है। लोगोंको पूरनपूरीका होता है न, इसलिये पूरनपूरीका दृष्टान्त दिया। बाकी चैतन्यका अपूर्व आनन्द अलग और पूरनपोरी तो जड है। परन्तु लोगोंको समझाना कैसे? इसलिये गुरुदेवने दृष्टान्त दिया।
मुमुक्षुः- वह आनन्द हमें मालूम पडे, उस प्रकारसे भाषामें आ सकता है?
समाधानः- भाषामें न आये। वह तो अनुपम है। जगतकी कोई वस्तुकी उसे उपमा नहीं दे सकते। वह तो अपूर्व है। चैतन्य वस्तु अलग, उसके गुण अलग, उसका आनन्द अलग। सब अलग है। वह तो उसे समझानेके लिये अनेक प्रकारसे उपमा दी है। गुरुदेवने भिन्न-भिन्न प्रकारकी उपमा दी। पूरनपूरीकी दे, घीकी दे, अनेक जातकी दे। घीका स्वाद कैसा? गुरुदेव बहुत बार कहते थे, उसका वर्णन करने जाय तो कर न सके। वैसे आत्माका आनन्द अपूर्व है।
चारों ओरसे लोगोंको उसका स्वाद होता है, उस दृष्टिसे। बाकी चैतन्य वस्तु अलगहै और यह जड वस्तु अलग है। बाकी उसे कोई जडकी उपमा लागू नहीं पडती। देवलोककी ऋद्धिकी उपमा भी उसे लागू नहीं पडती। इन्द्रका इन्द्रासन और देवलोककी ऋद्धि... "रजकण के ऋद्धि वैमानिक देवनी, सर्वे मान्या पुदगल एक स्वभाव जो।' सब