Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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मुमुक्षुः- सीधा अभेद।

समाधानः- हाँ, अभेद मैं चैतन्य हूँ। सबसे भिन्न मैं चैतन्य हूँ। उसका विस्तार करनेमें... मैं चैतन्य हूँ, जो विभावभाव आदि हैं, वह मेरा स्वभाव नहीं है, मैं चैतन्य हूँ। उसे स्वयंको मैं चैतन्य हूँ, इस प्रकार अपना अस्तित्व ग्रहण होता है। मैं अन्य कुछ नहीं हूँ, मैं एक चैतन्य हूँ। मेरेमें ज्ञान है, मेरेमें आनन्द है, वह सब भेद ज्ञानमें आते हैं। (दृष्टि) उसका अस्तित्व ग्रहण करती है। मैं हूँ सो हूँ, मैं चैतन्य अस्तित्व हूँ।

मुमुक्षुः- .. भावमें सीधा अभेद आता है। आपकी तो वाणीमें भी अभेद आता है। आज तो बहुत सुन्दर (आया)।

समाधानः- सच्चा तो दृष्टिमें अभेद आये। वाणी बोले उसमें भेद पडता है। परन्तु दृष्टि क्या कार्य करती है? वह कह सकते हैं। दृष्टिका कार्य ऐसा है कि अभेद ग्रहण करती है। स्वयं स्वयं ग्रहण हो गया, स्वयं स्वयंसे, अपना चैतन्य अस्तित्व-मैं यह हूँ। ऐसा उसे बल आ गया कि मैं चैतन्य ही हूँ। चैतन्य सो चैतन्य ही हूँ। किसीको पूछने नहीं जाना पडता। मैं चैतन्य हूँ, इस प्रकार अंतरमें-से ग्रहण हो गया।

जो मार्ग गुरुदेवने बताया, वही मैं चैतन्य हूँ। जो देव-गुरु-शास्त्र बताते हैं, वह मैं चैतन्य हूँ। उसकी परिणति अंतरमें-से अस्तित्व ग्रहण कर लेती है। अंतरमें-से ग्रहण करे वह अलग होता है।

मुमुक्षुः- .. फिर अंतरमें-से ग्रहण करे तो कितनी हूँफलगे।

समाधानः- हाँ, उसकी हूँफ तो (अलग ही है)। चारों ओर व्यर्थ प्रयत्न करता था, उसे अंतरमें-से चैतन्य ग्रहण हो जाय, तो उसे हूँफ ही आये न।