(જ્ઞાનનું) લબ્ધરૂપ જુદું અને અનુભવનું લબ્ધપણું જુદા પ્રકારનું તે વિષે.... 0 Play (ज्ञाननुं) लब्धरूप जुदुं अने अनुभवनुं लब्धपणुं जुदा प्रकारनुं ते विषे.... 0 Play
જ્ઞાની ઊંઘમાં હોય તોપણ તેની નજર સ્વભાવ ઉપર સ્થપાયેલી હોય છે શું? 2:30 Play ज्ञानी ऊंघमां होय तोपण तेनी नजर स्वभाव उपर स्थपायेली होय छे शुं? 2:30 Play
છઠ્ઠા ગુણસ્થાને દ્રષ્ટિ અંદરમાં ચૈતન્ય ઉપર હોય છે? 3:50 Play छठ्ठा गुणस्थाने द्रष्टि अंदरमां चैतन्य उपर होय छे? 3:50 Play
આપ કહો છો કે પરિણતિ ગાઢ થતી જાય છે એટલે લીનતા શું વધતી જાય છે? 5:10 Play आप कहो छो के परिणति गाढ थती जाय छे एटले लीनता शुं वधती जाय छे? 5:10 Play
આ છઠ્ઠું ગુણસ્થાન છે તે શું લીનતા ઉપરથી ખ્યાલ આવે? 5:55 Play आ छठ्ठुं गुणस्थान छे ते शुं लीनता उपरथी ख्याल आवे? 5:55 Play
જેટલી નિર્વિકલ્પદશા થઈ એટલે તેટલી લીનતા થઈ એવું નહીં? 6:35 Play जेटली निर्विकल्पदशा थई एटले तेटली लीनता थई एवुं नहीं? 6:35 Play
ચોથે ગુણસ્થાને બે જીવ હોય તો તેની લીનતામાં શું ફેર હશે? 7:30 Play चोथे गुणस्थाने बे जीव होय तो तेनी लीनतामां शुं फेर हशे? 7:30 Play
વચનામૃતમાં ‘ભાવના’ની વાત બહુ આવે છે તે વિષે...‘બહારમાં દુઃખ લાગે તો અંદરમાં આવ્યા વિના રહે નહીં’ અને બીજી જગ્યાએ એમ આવે છે કે ‘એકાંત દુઃખના બળે છૂટો પડે તેમ નથી તે સમજાવશો? 8:25 Play वचनामृतमां ‘भावना’नी वात बहु आवे छे ते विषे...‘बहारमां दुःख लागे तो अंदरमां आव्या विना रहे नहीं’ अने बीजी जग्याए एम आवे छे के ‘एकांत दुःखना बळे छूटो पडे तेम नथी ते समजावशो? 8:25 Play
એક બાજુ એમ કહ્યું છે કે આત્મા જ્ઞાનસ્વરૂપ છે એમ સ્વીકાર કરતો નથી અને બીજી બાજુ એમ કહ્યું છે કે રાગ-દ્વેષના પરિણામ મારામાં છે એમ સ્વીકાર કરવો. તે સમજાવો..... 13:20 Play एक बाजु एम कह्युं छे के आत्मा ज्ञानस्वरूप छे एम स्वीकार करतो नथी अने बीजी बाजु एम कह्युं छे के राग-द्वेषना परिणाम मारामां छे एम स्वीकार करवो. ते समजावो..... 13:20 Play
શું રાગાદિ પરિણામ પુદ્ગલના છે? 14:30 Play शुं रागादि परिणाम पुद्गलना छे? 14:30 Play
‘ તત્ત્પ્રતિપ્રિતિચિત્તેન ...’ આ વાત સાંભળી છે તો ‘ભાવી નિર્વાણ ભાજનમ્.’ એમાં અમે આવી ગયા કે નહીં... 16:00 Play ‘ तत्त्प्रतिप्रितिचित्तेन ...’ आ वात सांभळी छे तो ‘भावी निर्वाण भाजनम्.’ एमां अमे आवी गया के नहीं... 16:00 Play
પોતે, પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રીએ બતાવ્યું તે કરવાનું છે 16:50 Play पोते, पूज्य गुरुदेवश्रीए बताव्युं ते करवानुं छे 16:50 Play
પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રી પર્યાય અને દ્રવ્યની ભિન્નતાની વાત બહુ કરતા અને આપ દ્રવ્ય અને પર્યાયની અભિન્નતાની વાત કરો છો? પણ આપ બંનેનો અભિપ્રાય તો એક જ છે 17:25 Play पूज्य गुरुदेवश्री पर्याय अने द्रव्यनी भिन्नतानी वात बहु करता अने आप द्रव्य अने पर्यायनी अभिन्नतानी वात करो छो? पण आप बंनेनो अभिप्राय तो एक ज छे 17:25 Play
समाधानः- .. ऐसे गुरुदेव थे। वह लब्धरूप अलग है और यह लब्धरूप अलगहै। उसे स्वयंको चैतन्य निज अस्तित्वमें ग्रहण हुआ है। और वह अस्तित्व स्वयं ग्रहण करके फिर स्वानुभूतिमें जो वेदन हुआ है, वह वेदन उसे... वह परोक्ष है उसमें और यह परोक्ष है, इसमें फर्क है। दोनों लब्धरूप (हैं), लेकिन उस लब्ध-लब्धमें फर्क है।
मुमुक्षुः- वह तो स्मरणमात्र है कि..
समाधानः- स्मरणमात्र है। ये तो चैतन्यको स्वयं चैतन्यका वेदन (हुआ है)। उपयोग बाहर है। उसकी स्वानुभूति अभी नहीं है, लेकिन चैतन्यका जो अस्तित्व है वह अस्तित्व तो उसके हाथमें है। सविकल्प दशामें भी उसका अस्तित्व तो उसके हाथमें है। और उपयोग अपनी ओर आये तो शीघ्र उसका वेदन हो सके ऐसा है। वह उसे स्मरणमात्र नहीं है। वह परोक्ष और यह परोक्षमें फर्क है।
मुमुक्षुः- आप कल ऐसा बोले थे कि नजरमें प्रत्यक्ष है।
समाधानः- उसकी नजर स्थापित है, चैतन्य पर नजर स्थापित है। ये तो समीप है। गुरुदेवका है वह दूरवर्ती है, चैतन्य तो स्वयंको समीप ही है। और उपयोग बदले तो भी स्वानुभूतिका वेदन तुरन्त उसके हाथमें है, डोर उसके हाथमें है। वह परोक्ष और इस परोक्षमें अंतर है। लब्ध है, लेकिन उघाडरूप है। उसे उघाड ऐसा है कि अन्दर उपयोग लीन हो तो उसे स्वानुभूतिका वेदन उसी क्षण हो सके ऐसा है।
मुमुक्षुः- उपयोग लडाईका हो तो भी स्वानुभूतिका वेदन..
समाधानः- उपयोग लडाईमें (भले हो), लेकिन डोर अपने हाथमें है। उपयोग उस ओर है, लेकिन उपयोग पलट सके ऐसा है। स्वयं परिणति पलटे तो स्वयं अपनेमें लीन हो सके ऐसा है। डोर अपने हाथमें है। अस्तित्व अपना ग्रहण (किया है)। भेदज्ञानकी धारा चालू है। डोर उसके हाथमें ही है।
मुमुक्षुः- नींदमें हो तो भी नजर वहाँ स्थापित है?
समाधानः- नजर चैतन्य पर स्थापित है। चैतन्यको छोडकर स्वयं एकदम बाहर नहीं चला गया है। उसका उपयोग बाहर गया है। परन्तु दृष्टि तो उसमें स्थापित ही