Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 209.

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अमृत वाणी (भाग-५)

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ट्रेक-२०९ (audio) (View topics)

समाधानः- .. ऐसे गुरुदेव थे। वह लब्धरूप अलग है और यह लब्धरूप अलग है। उसे स्वयंको चैतन्य निज अस्तित्वमें ग्रहण हुआ है। और वह अस्तित्व स्वयं ग्रहण करके फिर स्वानुभूतिमें जो वेदन हुआ है, वह वेदन उसे... वह परोक्ष है उसमें और यह परोक्ष है, इसमें फर्क है। दोनों लब्धरूप (हैं), लेकिन उस लब्ध-लब्धमें फर्क है।

मुमुक्षुः- वह तो स्मरणमात्र है कि..

समाधानः- स्मरणमात्र है। ये तो चैतन्यको स्वयं चैतन्यका वेदन (हुआ है)। उपयोग बाहर है। उसकी स्वानुभूति अभी नहीं है, लेकिन चैतन्यका जो अस्तित्व है वह अस्तित्व तो उसके हाथमें है। सविकल्प दशामें भी उसका अस्तित्व तो उसके हाथमें है। और उपयोग अपनी ओर आये तो शीघ्र उसका वेदन हो सके ऐसा है। वह उसे स्मरणमात्र नहीं है। वह परोक्ष और यह परोक्षमें फर्क है।

मुमुक्षुः- आप कल ऐसा बोले थे कि नजरमें प्रत्यक्ष है।

समाधानः- उसकी नजर स्थापित है, चैतन्य पर नजर स्थापित है। ये तो समीप है। गुरुदेवका है वह दूरवर्ती है, चैतन्य तो स्वयंको समीप ही है। और उपयोग बदले तो भी स्वानुभूतिका वेदन तुरन्त उसके हाथमें है, डोर उसके हाथमें है। वह परोक्ष और इस परोक्षमें अंतर है। लब्ध है, लेकिन उघाडरूप है। उसे उघाड ऐसा है कि अन्दर उपयोग लीन हो तो उसे स्वानुभूतिका वेदन उसी क्षण हो सके ऐसा है।

मुमुक्षुः- उपयोग लडाईका हो तो भी स्वानुभूतिका वेदन..

समाधानः- उपयोग लडाईमें (भले हो), लेकिन डोर अपने हाथमें है। उपयोग उस ओर है, लेकिन उपयोग पलट सके ऐसा है। स्वयं परिणति पलटे तो स्वयं अपनेमें लीन हो सके ऐसा है। डोर अपने हाथमें है। अस्तित्व अपना ग्रहण (किया है)। भेदज्ञानकी धारा चालू है। डोर उसके हाथमें ही है।

मुमुक्षुः- नींदमें हो तो भी नजर वहाँ स्थापित है?

समाधानः- नजर चैतन्य पर स्थापित है। चैतन्यको छोडकर स्वयं एकदम बाहर नहीं चला गया है। उसका उपयोग बाहर गया है। परन्तु दृष्टि तो उसमें स्थापित ही