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तो स्फटिक स्वयं लालरूप परिणमता है। कहींसे नहीं आता।
.. घोटाला करता रहता है। स्वयं ही पुरुषार्थकी मन्दतारूप परिणमता है। पर्याय कोई घोटाला नहीं करती। द्रव्य-गुण-पर्याय वस्तुका स्वरूप ही है। एक दूसरेके बिना एक दूसरे होते ही नहीं। अनन्त गुण आत्मामें हैं। वह गुण अपना कार्य नहीं करे तो (गुण कैसा)? द्रव्य गुण बिनाका हो तो वह द्रव्य कैसा? गुण स्वयं अपना कार्य न करे तो वह गुण कैसा? द्रव्य-गुण-पर्याय, पर्याय कोई घोटाला नहीं करती।
सिद्ध भगवानको अनन्त गुण-पर्याय परिणमते रहते हैं। आनन्दगुण, ज्ञानगुण है वह परिणमता रहता है। परिणमन किया, वह पूरा हो गया इसलिये दूसरे समय खाली हो गया, ऐसा नहीं है। वह तो अनन्त काल तक परिणमता रहे तो भी थोडा-सा भी अन्दर खाली नहीं होता। उतनाका उतना आनन्द भरा है और उतनाका उतना ज्ञान भरा है। उत्पाद-व्यय होते ही रहते हैं। उत्पाद और व्यय। व्यय हो गया इसलिये सब खलास नहीं हो जाता। वैसाका वैसा भरा है। अनन्त भरा रहता है।
मुमुक्षुः- अनन्त सामर्थ्य वाली पर्याय होने पर भी अनन्तमेंसे कुछ खाली नहीं होता?
समाधानः- अन्दरमें कुछ खाली नहीं होता, अनन्त भरा ही है। मुुमुक्षुः- उतनाका उतना पूरा भरा रहता है? समाधानः- पूराका पूरा भरा रहता है, थोडा भी खाली नहीं होता। ज्ञानने एक समयमें जान लिया, अब दूसरे समय क्या जानेगा, ऐसा नहीं है। उतनाका उतना अनन्त भरा है।
मुमुक्षुः- ... पूर्ण निकालो और पूर्णका पूर्ण रहे।
समाधानः- अनन्त कभी खत्म ही नहीं होता। स्व-परप्रकाशक ज्ञान एक समयमें लोकालोक पूरा जान लिया। तो भी दूसरे समय उतना ही जाननेका अनन्त सामर्थ्य भरा है। उतना लोकालोक है, वह ज्ञेय है उतना ही जाना (ऐसा नहीं), अनन्त लोकालोक हो तो भी उसे जाननेका अंतरमें सामर्थ्य है।
मुमुक्षुः- चमत्कारिक अमृतका घडा, बहिनश्रीने लिखा है।
समाधानः- .. अनुभवमें आ गया इसलिये दूसरे समय खलास हो गया, ऐसा नहीं है। अनन्त काल पर्यंत परिणमता रहे तो भी उतनाका उतना है।
मुमुक्षुः- पाँच लड्ड थे, उसमेंसे चार खाये तो एक ही बाकी रहे न?
समाधानः- वह अलग बात है। वह तो पुदगलकी बात है, यह तो स्वभावकी बात है।
मुमुक्षुः- अक्षिण ऋद्धि वालेको भी लड्ड कम नहीं होते। लाख्खों लोग आये