१४२ उसके साथ चारित्रकी पर्याय, लीनताकी पर्याय बढती जाती है। एक गुणकी विशेषता हो, दर्शनकी निर्मलतामें ज्ञानकी निर्मलता और चारित्रकी निर्मलता (होती है)। परस्पर गुणोंको सम्बन्ध है। सर्वगुणांश सो सम्यग्दर्शन। एक सम्यग्दर्शनकी पर्यायमें समस्त गुणोंके निर्मल अंश प्रगट होते हैं। एकदूसरेकी पर्याय एकदूसरेको सहकारी रूपसे आगे बढती है। उसमें दृष्टि मुख्य रहती है।
दृष्टि मुख्य रहे इसलिये उसमें ज्ञान नहीं है, ऐसा नहीं। ज्ञान भी साथमें रहता है, पुरुषार्थ साथमें रहता है, चारित्रकी निर्मल पर्याय भी प्रगट होती है। प्रत्येक गुण अपना-अपना कार्य करता है। परन्तु दृष्टिका बल साथमें रहता है।
मुमुक्षुः- बल देनेमें दृष्टिका विशेष योगदान है।
समाधानः- हाँ, बल देनेमें दृष्टि विशेष है। मैं यह हूँ, यह मेरा ज्ञायकका अस्तित्वका वही मैं हूँ। अन्य सबको गौण करती है। परन्तु उसमें उसकी विरक्तिकी पर्यायें, लीनताकी पर्यायें, विभावसे विरक्ति और स्वभावकी लीनता बढती जाती है। और ज्ञान उसका विवेक करता है कि इतना अधूरा है, इतना प्रगट हुआ है। अभी प्रगट करना बाकी है। ज्ञान सब जानता है। यदि ज्ञानमें न जाने तो उसका पुरुषार्थ करना, स्वयं पूर्ण ही है तो फिर पुुरुषार्थ क्या करना? इसलिये ज्ञान विवेक करता है कि अभी अपूर्ण पर्याय है, अभी पूर्णता करनी बाकी है। ऐसा ज्ञानमें विवेक है। दृष्टिका बल साथमें है और चारित्रकी लीनता, परिणति विशेष प्रगट होती जाती है। सब साथमें ही रहते हैं। दृष्टिके साथ ज्ञान, लीनता आदि सब साथमें रहते हैं। स्वरूपाचरण चारित्र पहले प्रगट होता है, फिर चारित्रकी विशेष पर्यायें प्रगट होती हैं। उसकी स्वानुभूतिकी दशा, अमुक भूमिका हो तो अमुक प्रकारसे (होती है), फिर वृद्धिगत होती है।
मुमुक्षुः- उसमें ज्ञानमें ऐसा मालूम पडे कि पुरुषार्थ बाकी है, इसलिये पुरुषार्थ चले, वह कैसे?
समाधानः- ज्ञानमें जानता है कि पुरुषार्थ बाकी है। पुरुषार्थ तो,... वह ज्ञानमें जानता है। पुरुषार्थ हो गया ऐसा जाने तो पुरुषार्थ उठना (रहता नहीं), वह जानता है कि पुरुषार्थ बाकी है। पुरुषार्थ उठता है स्वयं पुरुषार्थसे, परन्तु ज्ञान उसमें जानता है कि यह बाकी है, उसमें ज्ञान कारण बनता है। पुरुषार्थ बाकी है, ऐसा जानता है, तो पुरुषार्थ उठनेका कारण बनता है। पुरुषार्थ उठता है स्वयं पुरुषार्थसे। पुरुषार्थके गुणसे उठता है। उसकी उतनी विरक्तिसे और पुरुषार्थके बलसे वह उठता है। ज्ञान उसका विवेक करता है।
मुमुक्षुः- सब उठनेका मूल कारण दृष्टि? दृष्टिका बल। जितना दृष्टिका बल बढता जाय उतना पुरुषार्थमें उस अनुसार...