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मुमुक्षुः- आपकी बात सच्ची है, गुरुदेवने हमको आज्ञा की है कि हम माताजीके प्रति जितनी भावना भाये और जितनी उनकी शरण ले सके उतना लेना, ऐसी गुरुदेवकी हमें आज्ञा है।
मुमुक्षुः- फिर भी कम है, फिर भी कम है। कभी भी कहो। हम कुछ नहीं करते हैं। हमारे जो भी अल्प भाव हैं, उसे आपके पास व्यक्त करते हैं। अतः आप सहर्ष स्वीकृति दीजिये और हम सबको...
समाधानः- मैं तो उसमें क्या कहूँ? मेरा स्वास्थ्य ऐसा है। आप लोगोंकी जैसी इच्छा और भावना हो। बाकी गुरुदेवका मनाये उसका मुझे आनन्द है।
मुमुक्षुः- आज भावना भाते हैं कि गुरुदेवकी सूर्यकीर्ति तीर्थंकरकी यहाँ स्थापना करनी।
समाधानः- अच्छी भावना है। सब बोले, कोई कुछ राशि भी बोले।
मुमुक्षुः- वैसे तो शास्त्रमें तो आता ही है। भावि तीर्थंकर..
समाधानः- शास्त्रमें तो आता है। तीन कालके तीर्थंकरोंकी स्थापना तो आती है।
मुमुक्षुः- बहुत समयसे विचार आ रहे थे। आज कहा, बोलूँ।
समाधानः- शास्त्रमें आता है, तीन कालके तीर्थंकरोंकी प्रतिष्ठा होती है, स्थापना होती है। परन्तु ये अभी वर्तमान संयोगमें... परन्तु भावना तो अच्छी करनी। और वह भावना पूरी हो, ऐसी सबकी इच्छा है।
मुमुक्षुः- अब ऐसा होनेवाला है कि जो जीएगा वह देखेंगे, गुरुदेवके शब्द है।
समाधानः- गुरुदेवकी यहाँ भावि तीर्थंकरके रूपमें स्थापना हो, उसके जैसा ऊँचा, उच्चसे उच्च है। वे स्वयं यहाँ विराजे हैं।
मुमुक्षुः- ... आनेसे पहले मुझे बात की, मैंने कहा, बहुत अच्छा विचार है। आपके आशिष हमें प्राप्त हो गये।
समाधानः- भरत चक्रवर्तीने स्थापना की थी।
मुमुक्षुः- लोग जाने कि यहाँ ऐसे सन्त विचरे थे और भविष्यमें जो तीर्थंकर होनेवाले हैं। तीर्थंकरकी वाणी तो उस वक्त सुनने मिलेगी, परन्तु यहाँ भी तीर्थंकरकी वाणी बरसती थी।
समाधानः- तीर्थंकर जैसी ही वाणी बरसती थी। ऐसी जोरदार बरसती थी कि जिसमें अकेली अमृतधारा ही बरसती थी।
मुमुक्षुः- मृत आत्मा जीवित हो जाय।
समाधानः- जागृत हो जाय।
मुमुक्षुः- माताजी! पूज्य गुरुदेवका नंदीश्वर जिनालयमें जो ... भावना है, उसके