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समाधानः- समवसरणमें गुरुदेव दिव्यध्वनि सुननेको जाते हैं। वे तो देवके रूपमें जाते हैं समवसरणमें।
मुमुक्षुः- बोले न कि आते हैं, किसीको दिखते नहीं। वह तो बराबर स्पष्ट हो गयी बात।
मुमुक्षुः- माताजी! गुरुदेव आपश्रीके बारेमें फरमाते थे कि जब आपश्रीको अनुभूति प्राप्त हुयी, तब क्षायिक सम्यग्दर्शन लेकर ही छूटकारा है, ऐसा उग्र पुरुषार्थ आपका था। ऐसा गुरुदेव कई बार फरमाते थे। परन्तु उस समयकी आपकी जो उस प्रकारकी भेदविज्ञानकी धारा थी, उसकी थोडी-सी प्रसादी हमको मिल सके तो बडी...
समाधानः- भीतरमें अप्रतिहतधाराकी उग्रता होती है तो ऐसी भावना आती है। कोई भेदज्ञानकी धारा उग्र होवे, अपडिवाही-अप्रतिहत धारा उसमें ऐसी भावना उग्र (होती है)। उग्र धारा, भेदज्ञानकी सहज धारा।