Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-२१३

किया है। जिनेन्द्र भगवान तो मिले, लेकिन स्वयंने स्वीकार नहीं किया है। इसलिये नहीं मिले, ऐसा शास्त्रमें आता है। मिले लेकिन स्वयंने स्वीकार नहीं किया है और सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हुआ है। ये दो जीवको दुर्लभ (हैं)। सम्यग्दर्शन अनन्त कालमें कभी प्राप्त नहीं किया है, वह प्राप्त करने जैसा है। उसकी अनुपमता और उसकी अपूर्वता हृदयमें लाकर वही करने जैसा है। वही एक अदभुत वस्तु है।

मुमुक्षुः- माताजी! मुझे तो गुरुदेव यानी सोनगढ और सोनगढ यानी गुरुदेव। यह सब मुमुक्षुओंने नक्की किया है। यह साधनाभूमि है, गुरुदेवकी तपोभूमि है उसे जीवनमें उत्कीर्ण कर दी है।

समाधानः- गुरुदेवकी साधनाभूमि है। इस पंचमकालमें इतने-इतने साल, ४५- ४५ साल निरंतर वाणी बरसायी, वह कोई महा योग (हुआ कि) इस पंचमकालमें ऐसे गुरुदेव यहाँ पधारे और चारों ओर वाणी बरसायी। सोनगढमें निरंतर निवास किया, वह सोनगढकी भूमि महा पवित्र है।

मुमुक्षुः- क्षेत्र पवित्र और द्रव्य पवित्र।

समाधानः- हाँ, दोनों पवित्र-द्रव्य मंगल और क्षेत्र मंगल। और गुरुदेवका भाव मंगल। ... वह क्षेत्र मंगल, गुरुदेवका द्रव्य मंगल, उन्होंने जो अन्दर प्रगट किया वह भाव मंगल। जिस कालमें वह प्राप्त हुआ वह काल मंगल है। भावना ऐसी हो तो... बाकी कोई माहोल... सोनगढको भावमें कुछ नहीं है। (बाहरका) माहोल चलता रहे, बाकी यहाँ रहनेवालोंको भावमें कुछ नहीं है। .. प्रधानता करके सब यहाँ करते रहते हैं। .. अपने द्रव्य पर दृष्टि करके, भावको प्रधान करके सब करना है।

मुमुक्षुः- एक महिनेका महोत्सव। भारतके सोलह भागके लोग वहाँ पधारे थे।

समाधानः- ... सब ब्रह्मचारी बहनोेंने जीवन इस प्रकार अर्पण किया है। सबको भावना है तो सब करते हैं। यहाँ गुरुदेवके प्रभावना-योगसे सब हो रहा है। गुरुदेव कब पधारे? गुरुदेव पधारे वह एक आश्चर्य लगे। आफ्रिका पधारे।.. इसलिये यहाँ आना मुश्किल पडे।

मुमुक्षुः- रहते हैं वहाँ, लेकिन भाव यहाँ है।

समाधानः- भाव यहाँ है। पहले आये थे, उसके बाद... महिनों तक।

समाधानः- .. जाणन स्वभाव जाननेमें आ रहा है। जाननरूप जाननेवाला परिणमन कर रहा है। जाननेवाला स्वभाव ... नहीं हुआ है। जाननेवालेको लक्ष्यमें ले तो यथार्थ जाननेमें आवे। तो जाननेवाला जाननरूप है, उसको जानो। जाननेवालेको जानो ऐसा आचार्य कहते हैं।

मुमुक्षुः- यानी परको मत जानो, ज्ञायकको जानो।