Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

१५८ एकत्वबुद्धि तोडकर ज्ञाता, ज्ञान, ज्ञेयरूप स्वयं परिणमता है। परज्ञेय रूप नहीं परिणमता है।

मुमुक्षुः- आपकी पुस्तकमें आता है, हे जीव! तुझे कहीं न रुचता हो तो अपना उपयोग पलट दे। तो वह उपयोग ज्ञानका लेना या चारित्रगुणकी पर्याय लेना?

समाधानः- ज्ञानका उपयोग जो परमें जाता है, उसको पलट दे। रुचि पलट दे। मैं चैतन्य (हूँ)। कहीं न रुचता हो, कहीं सुहाता न हो तो उपयोग आत्मामें लगा दे। ज्ञानका उपयोग पलट दे। रुचि पलटे तो उपयोग पलटे। रुचि परमें होती है। रुचि पलट जाय तो उपयोग पलट जाय।

मुमुक्षुः- परकी रुचिको दुःखका कारण जानना या हमारा ज्ञान परको जानता है उसको दुःखका कारण जानना?

समाधानः- ... रुचि परमें होती है, एकत्वबुद्धि वह दुःखका कारण है। जानना दुःखका कारण नहीं है।

मुमुक्षुः- तो फिर आप क्यों कहते हो कि उपयोग पलटाओ। फिर ऐसा क्यों कहते हो?

समाधानः- उपयोगके साथ अपना राग रहता है इसलिये। उपयोग पलटनेका अर्थ तेरा राग परमें जाता है, रागको पलट... उपयोग पलटनेका अर्थ ज्ञानका नाश कर ऐसा उसका अर्थ नहीं है। ज्ञानका नाश करनेका (ऐसा उसका अर्थ) नहीं है। अपने स्वकी ओर दृष्टि ला।

मुमुक्षुः- उपयोग और राग, अलग-अलग चीज ख्यालमें नहीं आती है। उपयोग और राग दोनों चीज ख्यालमें नहीं आती है।

समाधानः- (भले ख्यालमें) नहीं आता है, परन्तु दोनों साथमें रहते हैं। सूक्ष्म करके यह ज्ञान है, यह राग है, उसका भेदज्ञान करो। शास्त्रमें आता है, प्रज्ञाछैनी करके सूक्ष्म दृष्टि करके उसका भेदज्ञान करना। नहीं ख्यालमें आता है तो ख्यालमें लाकर सूक्ष्म बुद्धिसे पकड लेना कि यह ज्ञान है, यह राग है। ज्ञान-ज्ञायक मैं हूँ, उसका भेदज्ञान करना। यह ज्ञायक है, यह राग है।

मुमुक्षुः- प्रवचनसारमें आता है, इन्द्रियज्ञान दुःखरूप है, उसका अर्थ क्या है?

समाधानः- इन्द्रियज्ञान दुःखका कारण है, तो ज्ञान दुःखका कारण है। ज्ञान दुःखका कारण है, परन्तु उसमें खण्ड खण्ड उपयोग रागमिश्रित है न, वह दुःखका कारण है।

मुमुक्षुः- .. फिर परिणतिको पहचान लेता है। जघन्य है या उत्कृष्ट है, पहचानकर वैसा व्यवहार करे। वह जाननेका साधन बाह्यके सिवा तो कुछ नहीं है। तो अंतर परिणतिको एक दूसरे कैसे जानते होंगे? सम्यग्दर्शनपूर्वक उसका एक बाह्य द्रव्यलिंगका व्यवहार, भावलिंग पूर्वक, वह कैसे भिन्न करता है?