Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

१६० जानता है यह बराबर, परन्तु जानना-जाननेवाला तत्त्व कौन है? जाननेका स्वभाव किस तत्त्वमें है, उस तत्त्वको पहचानना चाहिये। जाने यानी यह जाना, यह जाना, बाहरका जाना (इसलिये जाननेवाला ऐसा नहीं)। जाननेवाला तत्त्व कौन है? जाननेवाली वस्तु कौन है, उसे पहचानना चाहिये। मात्र उसकी पर्याय भेद-भेद, या ज्ञेयको जाना इसलिये ज्ञान, ऐसे नहीं। ज्ञानकी पर्यायके भेद हो इसलिये जाननेवाला, ऐसे नहीं। परन्तु जाननेवाला पूरा तत्त्व उसे पहचानना चाहिये।

जो तत्त्व जाननस्वभावरूप है, उसे पहचानना चाहिये। जाननेवाला बराबर है, परन्तु जाननहार तत्त्वको जानना चाहिये। वस्तुको पहचाननी। (वस्तुको) पहचाने तो उसमें-से उसकी शुद्धात्माकी पर्याय प्रगट हो। शुद्धात्माको पहचाने, मूलमें जाकर पहचाने तो उसे प्रगट हो। ऊपर-ऊपरसे पहचाने कि जाननेवाला (है), ऐसे जाननेवाला यथार्थरूपसे पहचानमें नहीं आता।

लक्षणसे पहचानमें आये कि यह जाननेवाला सो मैं, यह जाननेवाला सो मैं और यह विभाव सो मैं नहीं, परन्तु वह जाननेका स्वभाव किसका है, उस चैतन्यतत्त्वको पहचानना चाहिये।

... मीठास कि यह शक्कर है, यह स्वाद शक्करका है, वह वस्तु कौन-सी? वह शक्कर क्या है? शक्कर पदार्थको पहचानना चाहिये। यह ठण्डक बर्फकी है, बर्फ पदार्थ कौन है, उसे पहचानना चाहिये। मूलको पहचानना चाहिये। ऐसे जानना-जानना हो रहा है, परन्तु जाननेवाला पदार्थ कौन है? (उसे मूलमें-से पहचानना चाहिये)।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!