समाधानः- .. मैं ऐसा हूँ, यह उसे बैठता नहीं है। पुरुषार्थमें कमजोरी आ गयी है और ऐसे बडा होना अच्छा लगता है।
मुुमुक्षुः- उसे बडप्पन अच्छा लगता है। समाधानः- एक ओर ऐसा हो गया है कि मैं कुछ नहीं हूँ, ऐसा हो गया है। तू भगवान है, ऐसा कहे तो जल्दीसे (बैठता नहीं)। गुरुदेवने सबको संस्कार डाले हैं कि तू भगवान है, भगवान है। पहले तो सबको ऐसा होता था कि अपने भगवान? भगवान हो वह भगवान होते हैं। ऐसा था। गुरुदेवने ऐसे संस्कार डाल दिये हैं कि तू भगवान है। गुरुदेव बारंबार-बारंबार कहते हैं, तू भगवान है। अंतरमें सबको भगवान...
मुमुक्षुः- गुरुदेवके प्रवचनमें गिनती करें तो कमसे कम पाँच-सात लाख बार भगवान आत्मा, भगवान आत्मा कहा होगा।
समाधानः- बहुत बार कहा है। व्याख्यानमें बहुत बार बोलते हैं, भगवान है, तू भगवान है।
मुमुक्षुः- "आत्मा' शब्द आये तो भगवान आत्मा ऐसा ही गुरुदेवके मुखमें आता था।
समाधानः- हाँ, भगवान आत्मा।
मुमुक्षुः- गुरुदेवके मुखमें आत्मा शब्द ही नहीं आता था। भगवान आत्मा। इतनी महिमा।
समाधानः- भगवान आत्मा ऐसा ही आता था।
मुमुक्षुः- पीछले वषामें तो समझमें आता है, उसके बजाय भगवान आत्मा, विश्रामरूप (वाक्य) ऐसा ही आता था।
समाधानः- समझमें आता है, वह कम होकर आहा..! बहुत आता था। आश्चर्यके शब्द बहुत आते थे। भगवान आत्मा आये तो आहा..! आचार्यदेव कैसा (कहते हैं)। इस प्रकार आहा.. शब्द बहुत आता था।
मुमुक्षुः- गुरुदेवश्रीको अन्दरसे महिमा उछलती थी। मुमुक्षुः- पीछले वषामें तो समझमें आता है, उसके बदले आहा.. आता था।