Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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शान्तिभाईके पत्नी है। अभी आठ दिन पहले हार्ट फेईल हो गया।

समाधानः- मनुष्यपना मिले उसमें गुरुदेवने यह मार्ग बताया वह ग्रहण करने जैसा है। शान्ति रखने जैसी है। गुरुदेवने कहा है, आत्मा शाश्वत है। उस शाश्वत आत्माका शरण ग्रहण करने जैसा है। जन्म-मरण, जन्म-मरण चलते रहते हैं। वहाँ कोई उपाय नहीं है। एक शान्ति रखनी वही एक (उपाय है)।

मुमुक्षुः- एकदम सो गये, कुछ नहीं था। एकदम सो गये।

समाधानः- पलट जाय, कब आत्मा चला जाय और शरीर पडा रहता है। आत्माकी शरण ग्रहण करने जैसा है। मनुष्यभवमें आत्माका करने जैसा है। संसार ऐसा है। अनन्त जन्म-मरण ऐसे हुए हैं। किसीको छोडकर स्वयं गया, स्वयंको छोडकर दूसरे चले जाते हैं। ऐसा यह क्षणभंगुर संसार (है)।

गुरुदेवने मार्ग बताया वह ग्रहण करने जैसा है। आत्मा शाश्वत है। आयुष्यके अनुसार कब फेरफार हो जाय कुछ मालूम नहीं। जन्म-मरण कैसे मिटे, वह उपाय गुरुदेवने बताया है। उसे ग्रहण करने जैसा है। गुरुदेवके प्रतापसे अन्दर जितने संस्कार डले हों वह साथमें आते हैं। दूसरा कुछ साथमें नहीं आता है। मैं भिन्न, सब भिन्न दिखाई देता है। गुरुदेवने कहा, सब भिन्न ही है। कोई शरण नहीं है। अन्दर विकल्प भी अपना शरण नहीं है तो शरीर कहाँ शरण है? आत्माकी शरण वही सत्य शरण है। अंतरमें सत्य शरण वह है। शान्ति रखनी सुखदायक है।

मुमुक्षुः- एक पर्यायको दूसरी पर्यायके साथ कोई भी सम्बन्ध नहीं है। फिर भी संस्कार, भाव, उसका बल हो उसे आत्मज्ञान होता है, ऐसा देखते हैं। परन्तु अगली- पीछली पर्यायको एकदूसरेको साथ सम्बन्ध नहीं है, फिर संस्कार और लगन जीवको कैसे काम आते हैं?

समाधानः- एकदूसरेको सम्बन्ध नहीं है और है भी। जो पर्याय होती है वह द्रव्यके आश्रय होती है। द्रव्यके आश्रय बिना निराश्रय पर्याय नहीं होती है। एक पर्यायका व्यय होता है, दूसरी पर्याय उत्पन्न होती है। एक पर्यायको दूसरी पर्यायके साथ एकदूसरेको सम्बन्ध नहीं है। परन्तु द्रव्यके आश्रयसे पर्याय होती है। जो द्रव्य वस्तु है, उस वस्तुके आश्रयसे पर्याय होती है। वह पर्याय ऐसी कोई स्वतंत्र नहीं है कि निराधार होती है। एक पर्यायको दूसरी पर्यायके साथ कोई सम्बन्ध नहीं हो तो बीचमें नित्य द्रव्य है। वह नित्य द्रव्य कहाँ गया? पर्याय तो क्षण-क्षणमें पलटती है। वह तो अनित्य (है), पर्याय तो अनित्य है। वस्तु नित्य है। जिसमें संस्कार आदि (होते हैं), वह तो नित्य द्रव्य है। उस द्रव्यके आश्रयसे पर्याय होती है।

मुमुक्षुः- वह बात बराबर है। परन्तु संस्कारको व्यवहारमें लिया है..