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समाधानः- भले व्यवहारमें लिया हो, परन्तु द्रव्यके आश्रयसे पर्याय होती है।
मुमुक्षुः- नयी पर्याय होती है वह सभी पूर्व पर्यायके संस्कार लेकर आती है? तो संस्कार काममें आते हैं, ऐसा कह सकते हैं? या संस्कार सांत्वनके लिये शब्द इस्तमाल किया जाता है कि तू यह करेगा तो तुझे यह संस्कार डलेेंगे।
समाधानः- नहीं, सांत्वनके लिये नहीं है। मूल वस्तु तो शुद्ध है। फिर भी वह संस्कार भी एक व्यवहार है सही। वह कोई ऊपर-ऊपरसे जूठ नहीं कहनेमें नहीं आता है।
मुमुक्षुः- संस्कारको किसमें डालेंगे, व्यवहारमें या निश्चयमें?
समाधानः- वह व्यवहार है, वह भी व्यवहार है। परन्तु वह व्यवहार ऐसा व्यवहार नहीं है कि जूठा व्यवहार है। ऐसा व्यवहार नहीं है। जो प्रत्यभिज्ञान कहनेमें आता है। जो आत्मा अनन्त कालसे जन्म-मरण करता आ रहा है, तो भी उसे पूर्वजन्मके संस्कारसे उसे इस भवमें कुछ ख्यालमें भी आता है, तो पूर्वजन्मके संस्कार है। संस्कार कोई जूठी वस्तु नहीं है, व्यवहार होनेके बावजूद।
मुमुक्षुः- उसी प्रकार हम लगन शब्दका भी अर्थ कर सकते हैं, लगन एक पर्याय भले दूसरी पर्यायसे भिन्न होती है...
समाधानः- हाँ, भिन्न होती है..
मुमुक्षुः- फिर भी लगनकी सातत्यता चालू रहती है। आखिरमें आत्मज्ञान और केवलज्ञान प्राप्त करवाती है। ऐसा ले सकते हैं न?
समाधानः- आत्मज्ञान, केवलज्ञान, हाँ। लगन जो अंतरमें लगती है वह कारण बनती है। व्यवहार कारण है परन्तु एकदम लगन अंतरकी गहरी हो, अन्दरकी गहरी लगन हो कि मुझे आत्मा ही चाहिये, दूसरा कुछ नहीं चाहिये तो उसे व्यवहार कारण बनता है। कार्य भले मूल वस्तुमें-से पर्याय प्रगट होती है, पर्यायका कारण द्रव्य है तो भी उसमें संस्कारका कारण बनता है। व्यवहार कारण कहते हैं।
मुमुक्षुः- गुरुदेवने भी बहुत बार कहा है कि संस्कार लेकर जायगा। इस जन्ममें भले तुझे प्राप्ति नहीं होगी, तो कालान्तरमें भी..
समाधानः- कालान्तरमें संस्कार साथमें लेकर जाता है।
मुमुक्षुः- तब मुझे यही प्रश्न हो रहा था कि एक पर्यायको दूसरी पर्यायके साथ सम्बन्ध नहीं है। फिर भी संस्कार चालू रह सकते हैं, इस प्रकार व्यवहारके कारण।
समाधानः- हाँ, संस्कार चालू रह सकते हैं। जिस जातके इस भवमें उसने संस्कार डाले हों, अंतिम मरणके समय उसके जो भाव हो, वह जहाँ दूसरे भवमें जाता है वहाँ उस जातके स्फूरित होते हैं। अंतरमें जो जातके अंतरमें ज्ञानके, दर्शनके, चारित्रके, आराधनाके, जिज्ञासाके, लगनके जो-जो भाव उसके आत्मामें घूले हुए हों, वह दूसरे