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भवमें उसे प्रगट होते हैैं। गहरे या ऊपरसे। ऊपरसे हो तो उसे कुछ ख्यालमें नहीं होता। परन्तु गहरे संस्कार हो तो प्रगट होते हैं।
मुमुक्षुः- चाहे जितना संस्कारको व्यवहारमें डाले तो भी वह निश्चयमें सहायभूत होता है, ऐसा उसका अर्थ हुआ।
समाधानः- व्यवहार कारण बनता है। यथार्थ हो, यथार्थ गहराईसे हो तो कारण बनता है। ऊपर-ऊपरसे स्थूल हो तो कारण नहीं बनता। व्यवहारसे किसीको धर्मके भाव ऊपर-ऊपरसे हो, ऐसा हो वह बात अलग है, बाकी अंतरका जो होता है वह तो उसे कारणरूप बनता है।
मुमुक्षुः- श्रीमदके एक पत्रमें आया है, ज्ञानमार्ग दूराराध्य है और भक्तिमार्ग वह सामान्य क्रम है। तो उनका कहनेका आशय क्या है? ज्ञानमार्ग यानी अभ्यास महत्त्वपूर्ण वस्तु नहीं है, परन्तु भक्ति करनी वह महत्त्वपूर्ण वस्तु है, ऐसा कहना चाहते हैं?
समाधानः- ज्ञानमार्ग यानी सब मनुष्य ऐसे गहरे विचार नहीं कर सकता, इसलिये भक्तिमार्ग (कहा है)। अर्थात वह भक्ति ऐसी नहीं है कि वह भक्ति कोई कर देता है ऐसा नहीं है। उसकी महिमा तू ला, ऐसा। सत्पुरुषकी महिमा ला। सत्पुरुषोंने जो प्रगट किया है ऐसा आत्मा आराधने योग्य है। भक्ति यानी महिमा करने योग्य है। सत्पुरुषकी महिमा अर्थात आत्माकी महिमा, उसे सम्बन्ध है। तू भगवाको पहचान या आत्माको पहचान, ऐसे। जिसने भगवानको नहीं पहचाना, उसने आत्माको नहीं पहचाना है। तू आत्माको पहचान तो भगवानकी पहचान होगी। और भगवानको पहचान तो आत्माकी पहचान होगी। भगवानकी महिमा ला। भगवानके द्रव्य-गुण-पर्याय कैसे हैं? ऐसे महिमा आने पर वह विचार आयेंगे कि भगवान कैसे हैं? ऐसे सत्पुुरुष कैसे हैं, कैसे हैं, ऐसे उसके विचार करते-करते उनका आत्मा क्या काम करता है? ऐसा विचार करते-करते तुझे आत्माकी ओर लक्ष्य जानेका कारण बनेगा।
ज्ञानमार्ग यानी शुष्कज्ञान ऐसे नहीं। ज्ञानमार्ग दूराराध्य है अर्थात जिसे बहुत क्षयोपशम न हो, ज्यादा बात जान न सके परन्तु मूल प्रयोजनभूत ज्ञान तो होना चाहिये। प्रयोजनभूत न जाने तो फिर आगे ही नहीं बढ सकता।
मुमुक्षुः- भक्तिमार्गमें भी प्रयोजनभूत ज्ञान तो चाहिये ही।
समाधानः- प्रयोजनभूत ज्ञान तो समाया ही है। अकेली भक्ति, समझे बिना भक्ति करना, ऐसा अर्थ नहीं है। प्रयोजनभूत ज्ञानको लक्ष्यमें लेना। मैं चैतन्य हूँ, यह सब भिन्न है। ऐसा सब प्रयोजनभूत ज्ञान तो होना चाहिये। भले ज्यादा न जानता हो।
मुमुक्षुः- .. शास्त्रमें भी भक्तिकी इतनी महिमा है कि बात मत करो। श्रीमदमें भी भक्तिकी महत्ता बहुत दी है। परन्तु भक्तिका यही अर्थ लेना चाहिये। सामान्य पैर