१७८ दशा आती है। ज्ञान, दर्शन, चारित्रके भेद पर दृष्टि मत कर। तो भी बीचमें भेद तो आता है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र सब बीचमें आता है। तो उसका सब मेल करना चाहिये। निश्चय-व्यवहारका मेल करना चाहिये। समझना चाहिये।
मुमुक्षुः- अब तो आपने जो कहा उस पर हम अभ्यास करेंगे और आपकी जयंति पर आयेंगे, जो कुछ बात होगी तो कर लेंगे। माताजी! .. हम पामर प्राणिओंको संबोधनेके लिये पधारी। आज पूज्य गुरुदेव नहीं है यहाँ पर, फिर भी आपश्री विद्वान हैं तो ऐसा लगता है कि मानों साक्षात गुरुदेव ही विद्यमान हैं और गुरुदेवका ही सब कुछ हमको मिल रहा है। बडे भाग्यशाली हैं कि आपके दर्शन, आपकी बात सुननेको मिली। यह तो जन्म-मरणका अभाव करनेवाली है, माताजी! दुनियामें कहीं भी चले जायें राग-रंगकी बात (चलती है)। यह बात कहीं नहीं है।
समाधानः- गुरुदेवका प्रताप है। गुरुदेवने सब समझाया है। मैं तो उसका दास हूँ। उन्होंने जो समझाया है वह कहते हैं।
मुमुक्षुः- हम लोग कल चल जा रहे हैं। जो गलती हुयी हो, क्षमा करना आप।
समाधानः- ... ऐसा ही मानना, मुझे ऐसा विचार आया कि मानना परन्तु ये सब माहोल... विचार आया इसलिये हो जाय ... गुरुदेव तो विचार भी जानते थे। अन्दर भावना हो कि गुरुदेव पधारो, पधारो विनंती करनेका भाव आया तो गुरुदेव समाधान कर दिया कि मैं हूँ ऐसा ही मानो। ये सब बेचारे.. तो सबको शान्ति हो जाय।
मुमुक्षुः- आपके विचार और आपकी भावना अनुसार गुरुदेवने कर दिया।
समाधानः- स्वर्गमें बैठे हैं फिर भी मानों उनकी शक्ति चारों ओर फैल जाती है। गुरुदेवको पधारना... मैं हूँ, ऐसा ही मानना। गुरुदेव पधारे ऐसा भी किसीको कहना नहीं रहा, सबको ऐसा हो गया कि गुरुदेव है। ... ये सबका क्या होगा? ऐसा मुझे हो जाय। गुरुदेव इसमें कैसे पधारे?
... पहले देखा था न। थोडा स्वप्न आया। कहो तो सही सबको। ... ये सजावट कैसी? ये तो सजावट है। ... ऐसी सजावट! गुरुदेव पधारे ऐसी भावना अन्दर हुयी। गुरुदेव पधारो। गुरुदेव मानों देवके रूपमें हाथ करते हैं कि ऐसा ही रखना कि मैं यहीं हूँ। ... ये सजावटी कैसी! ये तो सजावट है। गुरुदेव पधारो। ये कैसी सजावट है। उसी दिन जल्दी सुबह ऐसा हुआ कि ऐसी सजावट, गुरुदेव पधारे ऐसी भावना अन्दर हुयी कि गुरुदेव पधारो। गुरुदेव मानों देवके रूपमें हाथ करते हैं कि ऐसा ही रखना कि मैं यहीं हूँ।
मुमुक्षुः- ऐसा स्वप्न आया माताजी?