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समाधानः- हाँ। देवके रूपमें। .. रातको मिलने आयी थी। कहा, ये सजावट कैसी है! ये तो सजावट है। गुरुदेव पाधारो, ये कैसी सजावट है। उसी दिन जल्दी सुबह ऐसा हुआ कि ऐसी सजावट, गुरुदेव पधारे ऐसी भावना अन्दर हुयी कि गुरुदेव पधारो। गुरुदेव मानों देवके रूपमें हाथ करते हैं कि ऐसा ही रखना कि मैं यहीं हूँ। ऐसा ही रखना कि मैं यहीं हूँ। मेरे मनमें उस वक्त ऐसा हुआ कि ऐसे कैसे रखना? सबको कैसे रखना? परन्तु सबका... गुरुदेव है ही, ऐसा माहोल... .. प्रकाशमान है, मैं यहीं हूँ ऐसा मानना। देवके रूपमें गुरुदेव ही...
समाधानः- ... और पूर्ण प्रगट हो वह .. आंशिक प्रगट हो ... उसमें निश्चय और व्यवहार दोनों आ जाते हैं। निश्चयमें स्व, व्यवहारमें जो गुरुको प्रगट हुआ वे गुरु। सर्वज्ञदेव परमगुरु। स्व और गुरु दोनों आ गये। जिन्हें पूर्ण प्रगट हुआ... सहजात्म अर्थात स्वयं। सर्वज्ञ गुरु। जिसे प्रगट हुआ वे।
मुमुक्षुः- सत्पुरुषके योगमें मुमुक्षुको क्या लाभ होता है? सत्पुरुषके योगसे प्रथम भूमिकामें मुमुक्षुको क्या लाभ होता है?
समाधानः- अपनी तैयारी हो तो बहुत लाभ होता है। गुरु जो मार्ग बताते हैं, उनकी अपूर्व वाणी, प्रथम भूमिकामें स्वयंकी अंतरकी पात्रता और मुमुक्षुताकी विशेषता करनेमें गुरु (निमित्त होते हैं)। पूरा मार्ग प्रगट हो, जितनी स्वयंकी पुरुषार्थकी तैयारी उस अनुसार लाभ होता है। गुरुका तो प्रबल निमित्त है। उनकी वाणी अपूर्व, उनका योग अपूर्व, सब अपूर्व। उनका समागम अपूर्व है। अपनी पुरुषार्थकी तैयारी हो उस अनुसार लाभ होता है। उनका तो सर्वस्व लाभका ही निमित्त है।
सम्यग्दर्शन प्राप्त करनेके अंशसे पूर्णता पर्यंत लाभ हो ऐसा गुरुके निमित्तमें तो है, परन्तु स्वयंकी तैयारी हो उस अनुसार लाभ होता है। अपनी मुमुक्षुता विशेषतासे स्वयंको मार्ग मिले, स्वयं आगे बढ सके, स्वानुभूति प्रगट हो, स्वयंका पुरुषार्थ हो अनुसार लाभ होता है। जिसकी स्वयंकी पुरुषार्थ तैयारी हो, उस अनुसार लाभ होता है। यथार्थ रुचि प्रगट हो, यथार्थ मार्ग मिले, यथार्थ निश्चय हो, चारों ओरकी पात्रता हो, स्वयंका पुरुषार्थ हो तो लाभ होता है।
अपने उपादानकी तैयारी हो उस अनुसार लाभ होता है। निमित्त तो प्रबल है। अपनी तैयारी होनी चाहिये। यथार्थ ज्ञान हो, यथार्थ प्रतीत हो, यथार्थ लीनता हो, सब होता है। अपने पुरुषार्थ अनुसार होता है। .. स्पष्ट हो जाय उनके निमित्तसे। पुरुषार्थकी तैयारी, अपनी तैयारी हो तो लाभ हुए बिना रहता ही नहीं।
जीवनमें एक ही करना है, आत्माकी रुचि कैसे प्रगट हो? आत्मा कैसे समझमें आये? भेदज्ञान कैसे हो? आत्माको मुक्तिका मार्ग कैसे मिले? स्वानुभूति कैसे हो?