Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1417 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-५)

१८४ ग्रहण कर लेती है और भीतरमें परिणति चली जाती है तो भेदज्ञान हो जाता है।

मुमुक्षुः- माताजी! ज्ञानीकी एक-एक बातमें, एक-एक शब्दमें अनन्त आगम समाहित है, यह कैसे है? माताजी!

समाधानः- अनन्त आगम (इस तरह है), मुक्तिकी पर्याय, अंतरकी पर्याय जो प्रगट होती है कि यह स्वभाव है, यह विभाव है, यह स्वानुभूति है, पूर्ण क्या है, अल्प क्या है, अखण्ड क्या है, स्वानुभूतिमें ज्ञानमें सब आ जाता है। तो वह सब जानता है। साधक क्या है, साध्य क्या है, लक्षण-लक्ष्य क्या है, ज्ञानीके ज्ञानमें यह सब आ जाता है। इसलिये प्रयोजनभूत मूल तत्त्व, मोक्षमार्ग मुक्तिका मार्ग क्या है, यह सब सम्यग्दृष्टिके ज्ञानमें आ जाता है। इसलिये उसके शब्दमें अनन्त आगम आ जाते हैं। मूल प्रयोजनभूत तत्त्व आनेसे सब आ जाता है।

एक जानने-से सब जाननेमें आ जाता है। एक चैतन्यको जाना उसने सब जाना। एक चैतन्यद्रव्यको जाना, उसका अंश प्रगट हो गया। एक अंश जो प्रगट हुआ तो सर्वको जान लेता है। पूर्णताके लक्ष्य से शुरूआत। उसमें पूर्ण आ जाता है। जो बीज प्रगट होता है, उसमें पूर्ण चन्द्र क्या है, अंश क्या है, सब आ जाता है। इसलिये ज्ञानीके ज्ञानमें सब आ जाता है तो शब्दमें भी आ जाता है। उसके ज्ञानमें सब है तो उसकी वाणीमें सब आ जाता है। मूल प्रयोजनभूत तत्त्व सब आ जाता है।

मुमुक्षुः- माताजी! श्रीमदजी कहते हैं कि यदि यह जीव सत्पुरुषके चरणोंमें सर्व भाव समर्पण कर देवे और मोक्षकी प्राप्ति न होवे तो हमसे ले जाय, यह कैसे है? माताजी! कैसे सर्व भाव ज्ञानीके चरणोंमें समर्पण कर दे?

समाधानः- जो ज्ञानी कहते हैं वह सब यथार्थ है। उसने जो मुक्तिका मार्ग बताया, जो कहा, सब यथार्थ है। इसलिये अपने स्वभावमें उसे ग्रहण कर लेना। जो ज्ञानी कहते हैं, सब यथार्थ है। ऐसी अपनी परिणति प्रगट करना। सर्व भाव अर्पण कर देना। जो विकल्प है वह मेरा स्वभाव नहीं है। मैं उससे भिन्न हूँ। विकल्प, सर्व विकल्पको ज्ञानीके चरणमें छोड देना अर्थात ज्ञायक हो जाना। ज्ञायक हो जाना, तो मुक्ति अपनेआप हो जाती है। जो ज्ञायककी धारा प्रगट हुयी तो स्वानुभूति हो जाती है। विकल्पसे भेदज्ञान कर देना। सब भाव ज्ञानीके चरणमें छोड देना। मैं इसका स्वामी नहीं हूँ और मैं ज्ञायक हूँ। ज्ञायक हो गया तो सब भाव ज्ञानीके चरणमें आ गये। ज्ञानीको कुछ चाहिये नहीं, परन्तु स्वामीत्वबुद्धि छोडकर ज्ञायक हो जाना, इसलिये मुक्ति अपनेआप हो जाती है।

मुमुक्षुः- माताजी! ४५ वषासे अनेक बहनोंने-ब्रह्मचारी बहनोंने और बहुत-से मुमुक्षु भाईओंने पूज्य गुरुदेवके चरणोंमें और आपश्रीके चरणोंमें सर्व भाव अर्पण किया है।