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रोकता नहीं है, निज उपादानसे ही होता है। ऐसी अनेक प्रकारकी प्रवचनमें बात आती थी, उस परसे विचार (आते थे)।
मैं कौन हूँ? मेरा स्वरूप क्या है? ऐसे अनेक प्रकारके विचार आते थे। एक ही प्रकारके आये ऐसा नहीं होता। वस्तुका क्या स्वरूप है? तत्त्व क्या है? आत्मा शाश्वत कैसे है? पर्यायमें अनित्यता कैसे है? अनेक प्रकारके विचार आते हैं। जिसे जिस प्रकारकी अंतरमें शंका होती है, उस जातके विचार आते हैं।
मूल आत्माकी प्राप्ति कैसे हो? आत्मामें-से सुख कैसे हो? उस जातका ध्येय होना चाहिये। फिर किसीको किस प्रकारके विचार आये, वह स्वयंकी योग्यता पर आधारित है। मूल तत्त्व सम्बन्धि विचार होने चाहिये। आत्मा वस्तु क्या है? उसकी पर्याय क्या है? उसके गुण क्या है? ये विभाव है, विभावमें सुख नहीं है, विभावमें आकुलता है। इस स्वभावमें सुख है। ऐसे, उस सम्बन्धित विचार आने चाहिये। उस जातका घोलन, उस जातका मनन, उस जातकी प्रतीतिकी दृढता करनेका प्रयास वह सब (होता है)। उसीकी लगनी, क्षण-क्षणमें उसके विचार, क्षण-क्षणमें उसका ध्यान, विचार आदि लंबे समय उसीकी एकाग्रता चलती रहे, उसीके विचार चलते रहे। दो-तीन घण्टे, पूरा दिन और रात वही चलता रहता था।
मुमुक्षुः- हम लोग वढवाण गये थे। मामाने सब बात कही कि आपकी मामाके साथ चर्चा होती थी। तो उस चर्चामें मुख्य विषय क्या था? कि जिससे हमें पुष्टि मिले।
समाधानः- अभी आप लोगोको गुरुदेव-से कितना मिला है! अन्दर एक प्रयत्न करना ही बाकी रहा है। भेदज्ञानका क्या स्वरूप है? ये दो तत्त्व भिन्न, द्रव्य-गुण- पर्याय क्या, उत्पाद-व्यय-ध्रुव क्या, सब गुरुदेवने ऐसा स्पष्ट कर दिया है। आत्मा नित्य कैसे? द्रव्य नित्य कैसे? पर्यायमें अनित्यता है, गुणके भेद पर दृष्टि नहीं करनी, पर्यायभेद पर दृष्टि नहीं करनी, अखण्ड पर दृष्टि करनी। सब ज्ञान करना। अभी तो बहुत मिला है।
उन दिनोंमें तो यह कोई बात थी नहीं। अभी तो क्या सत्य है? उसके विचार चलते थे। वस्तु तत्त्व क्या सत्य है? जगतमें अनेक जातके मतभेद हैं, उसमें यथार्थ क्या है? ऐसी चर्चा चलती थी। उसमें हिंमतभाईको तो बहुत जातके विचार (आते थे), उन्हें भी उतने विचार चलते थे, मुझे भी उतने विचार चलते थे। प्रयत्न चलता रहता था कि सत्य क्या है? अनेक जातके मत जगतमें है, उसमें यथार्थ क्या है? उस जातकी चर्चा चलती थी। उसमेंसे नक्की (किया)।
उसमें गुरुदेव क्या कहते हैं? उस प्रकारसे विचार चलते थे। परन्तु यथार्थ तत्त्व क्या है? उसके विचार चलते थे। हिंमतभाई भी उतने विचार करते थे, यहाँ मुझे भी