१९२ इतने विचार चलते थे। गुरुदेवने प्रवचन करके इतना स्पष्ट कर दिया है कि किसीको कहीं शंका रहे ऐसा नहीं रहा है। अन्दर भेदज्ञान (करना बाकी रहता है)। सब तैयार करके गुरुदेवने माल दिया है। अन्दर स्वयंको परिणति करनी बाकी रहती है। उन दिनोंमें तो अनेक जातके विचार (आते थे)।
शास्त्रमें क्या आता है? इतने शास्त्र नहीं पढे थे। तत्त्व क्या सच्चा है, अभी तो यह निर्णय करना बाकी था। शुभमें धर्म नहीं है, शुभमें आकुलता है। ऊच्चसे उच्च शुभभाव पुण्यबन्ध आकुलता कैसे है? उन दिनोंमें अभी तो यह नक्की करना था। बाह्य क्रियामें धर्म नहीं है, शुभभावमें धर्म नहीं है। देवलोक मिले वह भी आकुलता है। यह सब किस प्रकारसे है? यह सब निर्णय करना था, अभी तो स्थूल निर्णय करना था। अभी तो सूक्ष्ममें आगे जाना बाकी था।
उसमें-से मैं ज्ञायक हूँ, यह विभाव भी मेरा स्वभाव नहीं है। यहाँ तक अन्दर पहुँचना था। विचार कर-करके निर्णय करना था। शुभभावमें धर्म नहीं है। अनन्त बार देवलोक मिला, वहाँ-से वापस आया। गुरुदेव कहते थे, चमडी उतारकर नमक छिडके ऐसी क्रिया की, तो भी उसे धर्म नहीं हुआ है। तो भी उसे स्वभाव प्रगट नहीं हुआ। यह सब कैसे है? अभी तो विचार करके यह सब नक्की करना था। ऐसी सब चर्चा चलती थी।
उसमें-से निर्णय करके यह भेदज्ञान, यह स्वभाव, चैतन्य ज्ञायक स्वभाव वह मैं हूँ और यह विभाव मैं नहीं हूँ, उसमें-से नक्की-दृढता करके, उस मार्ग पर दृढता करके आगे उसीकी दृढता, उसीका ध्यान दो-तीन घण्ट तक वही चला करता था। और पूरा दिन और रात वही चलता था। मैं ज्ञायक हूँ और यह मैं नहीं हूँ। अंतरमें- से ही यह चलता रहता था।
अभी तो दर्शन कौन-सा सत्य है? अभी तो श्वेतांबर-दिगंबर क्या? अभी तो वह भी पूरा बाहर नहीं आया था। उसमें-से मूल तत्त्व ग्रहण करना था। किसीको पूछने जाय, सागरानंदको पूछने जाय, रामविजयको पूछने जाय, देरावासी साधुको पूछने जाय, कहाँ-कहाँ सबको पूछते थे। मैं तो अन्दरसे प्रश्न-चर्चा करती थी। पहलेकी बात और अभीकी बात (अलग है)। आपको तो सब पूरा-पूरा मिल गया है। अन्दर करनेका है।
मुमुक्षुः- रतनबहिनको पूछने जाते थे।
समाधानः- हाँ, रतनबहिनको पूछने जाते थे। कुछ नया हो, कोई आया हो अथवा कोई ध्यान करता है और कोई आत्मा (सुनाता है), देखने जाते थे। अभी तो सब नया लगता था।
मुमुक्षुः- उनको वढवाणकी बातें बहुत अच्छी लगी। कल कहते थे। वढवाणकी