Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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PDF/HTML Page 1426 of 1906

 

ट्रेक-

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बातसे मुझे दृढ हुआ कि सोनगढमें ही रहना। ... "मानादिक शत्रु महा निज छन्दे न मराय, जाता सदगुरु शरणमां...' सत्पुरुषके शरणमें रहना वह मुझे दृढ हो गया। पहले विचार आता था, परन्तु आपकी बचपनकी बातें सुनकर.. ये दोनों भाईओंने कहा, .... मुझे छोडकर आ जाना है। कल कहते थे।

समाधानः- (चर्चा) चलती थी, उसमें-से नक्की करते थे कि सत्य क्या है? लेकिन गुरुदेव कुछ अपूर्व कहते हैं, ऐसा मुझे भी लगता था और हिंमतभाईको भी लगता था कि यह कोई अपूर्व बात है। इस रास्तेसे नक्की हो सके ऐसा है। सम्यग्दर्शन कोई अलग वस्तु गुरुदेव बताते हैं। सब शास्त्रोंमें तो, उस वक्त तो श्वेतांबरके शास्त्र थे न, नौ तत्त्वको जान लिया वह श्रद्धा, और यह सब जूठा है। गुरुदेव तो कुछ अंतरकी श्रद्धा कहते हैं। फिर नक्की करके उसकी चर्चा करते, उसमें-से नक्की हो गया कि बस, यह ज्ञायक स्वभाव... सुख अन्दरसे प्रगट करना। ये ज्ञायकस्वभाव जाननेवाला सो मैं और यह विभाव मैं नहीं हूँ। गुरुदेव कहते थे, ऊच्चसे उच्च शुभभाव भी पुण्यबन्धका कारण है। देवलोक हो, परन्तु वह आत्माका स्वभाव नहीं है।

उस वक्त कहते थे कि, भगवानको दया नहीं होती। ऐसा कहते थे तो ऐसा लगता था कि ये क्या कहते हैं? आश्चर्य लगता था। दया वह शुभभाव है। दया शुभभाव कैसे होगा? एकदम शुरूआत थी न। इसलिये ऐसा लगता था।

मुमुक्षुः- ..कुमारके भवका प्रख्यात दृष्टान्त था।

समाधानः- हाँ। ऐसे भगवान अनन्त करुणावन्त कहलाये और ऐसे भगवानको दया-शुभभाव भगवानको नहीं होता। इसलिये दयाका भाव नहीं होता और ऐसे भगवान अनन्त करुणावंत कहलाये। ये सबका कैसे मेल है? ऐसा होता था।

फिर ऐसा कहते थे कि शुभभाव वह विकल्प है, पुण्यबन्धका कारण है। करुणा तो भगवानको अकषाय करुणा है, उनकी वाणी बरसती है। विभावसे आत्मा भिन्न है, यह नक्की करना था। फिर गुणभेद, पर्यायभेद वह सब तो उससे भी आगे थे। आत्मामें अनन्त गुण हैं, पर्याय क्षण-क्षणमें परिणमती है। उस भेद पर भी दृष्टि करके अभेद ज्ञायक पर दृष्टि करनी। यथार्थ सम्यग्दर्शन तो आत्मा पर दृष्टि करे तो ही प्रगट हो। वह आगे था।

परन्तु एक ज्ञायकका अस्तित्व ग्रहण होने पर उसमें सब आ जाता है। उसमें एक ज्ञायकका अस्तित्व ग्रहण करने पर उसमें भेदज्ञानकी धारा (चलती है कि), यह मैं हूँ और यह नहीं हूँ। ज्ञायकका अस्तित्व ग्रहण करे उसमें अभेद दृष्टि उस पर जाये तो उसमें सब समाविष्ट हो जाता है। एक अंश प्रगट हुआ, स्वरूपकी ओर गया, शुद्धात्माकी एक पर्याय सम्यग्दर्शन (प्रगट हुयी)। स्वभाव-ओरका अपना एक अंश प्रगट