Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

१९६ भरा, उसका रिश्ता और उसका सम्बन्ध शाश्वत रहता है।

अनन्त कालमें सब प्राप्त हुआ। गुरुदेव कहते थे न, एक सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हुआ है। जीवनमें उसीके संस्कार पडे और उसका कुछ पुरुषार्थ हो तो वह अपूर्व है। कहते हैं न, जिनवर नहीं मिले हैं और सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हुआ है। जिनवर मिले तो स्वयंने पहचाना नहीं। और सम्यग्दर्शन तो प्राप्त नहीं हुआ है। गुरुदेवने मार्ग बताया। और इस पंचमकालमें गुरुदेव मिले और सम्यग्दर्शनका मार्ग बताया तो उसी मार्ग पर जाने जैसा है।

"मैं एक शुद्ध सदा अरूपी, ज्ञानदृग हूँ यथार्थसे'। मैं एक स्वरूप शुद्ध और अरूपी आत्मा ज्ञान-दर्शनसे भरा हूँ। कोई अन्य परमाणुमात्र मेरा नहीं है। एक परमाणुमात्र अपना नहीं है। ऐसा गुरुदेव कहते थे, ऐसा भेदज्ञान करने जैसा है।

याद आये परन्तु संसारका स्वरूप ऐसा है। बारंबार आत्माका स्मरण करने जैसा है। देव-गुरु-शास्त्र और आत्मा हृदयमें रखने जैसा है। जीव जन्मता अकेला है, मरता अकेला है, सुख-दुःखका वेदन करनेवाला अकेला है और चार गतिमें भ्रमण करनेवाला अकेला और मोक्ष जाय तो भी अकेला ही है। पुरुषार्थ करके, स्वयं अकेला ही स्वतंत्रपने पुरुषार्थ करके स्वानुभूति प्रगट करनेवाला (है)। शुभाशुभ परिणाम करके जन्म-मरण करनेवाला अकेला है। ऐसी अंतरमें एकत्व भावना करने जैसी है। बाकी सब सम्बन्ध और रिश्ता संसारमें बहुत किये, मानों सब सम्बन्ध ऐसा ही रहेगा, परन्तु वह सब शाश्वत नहीं है। शाश्वत एक आत्मा है। ऐसा सब सम्बन्ध अनन्त कालमें बहुत किये और बहुत बिछड जाते हैं।

समाधानः- .. ज्ञान तो अमर्यादित है। ज्ञानको कोई मर्यादा नहीं है कि ज्ञान इतना ही जाने। ज्ञान उसीका नाम कहते हैं कि जो ज्ञान असाधारण गुण है। ज्ञान पूर्ण जानता है। स्वयं अपनेको जानने पर, पर ज्ञात हो जाता है। उसमें सहज ज्ञात हो जाता है।

ज्ञेयमें एकत्वबुद्धि तोडनेको कहा जाता है, परन्तु उसका जाननेका स्वभाव चला नहीं जाता। एकत्वबुद्धि तोडकर तू तेरे आत्माको जान। परन्तु उसमें उसका जाननेका स्वभाव चला नहीं जाता। रागसे एकत्वबुद्धि तोडनी है। रागके साथ, ज्ञेयके साथ एकत्वबुद्धि (है)। भेदज्ञान करके मैं ज्ञायक हूँ (ऐसा अभ्यास करना है)। उसका जाननेका स्वभाव है, उस स्वभावका कहीं नाश नहीं होता है। उसमें ज्ञात हो जाता है। ज्ञानकी मर्यादा नहीं होती, ज्ञान पूर्ण जानता है। स्वयं अपनमें स्व-ओर उपयोग कर। छद्मस्थ है उसका उपयोग एक बारमें एकको जानता है। छद्मस्थका क्रमसर उपयोग (चलता है)। अपनी ओर उपयोग होता है तो पर-ओर उपयोग नहीं है, इसलिये ज्ञात नहीं होता है। बाकी