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उसके स्वभावका नाश नहीं होता है। केवलज्ञान, वीतरागी ज्ञान होता है उसमें पूर्ण ज्ञात हो जाता है। उसका स्वभाव जाननेका है।
मुमुक्षुः- छद्मस्थको निर्विकल्पताके समय पर ज्ञात नहीं होता है। वह तो उसका क्रमसर उपयोग है, इसलिये एक बारमें एक ज्ञात होता है, दूसरा ज्ञात नहीं होता है। अतः जाननेका स्वभाव नाश नहीं होता है। जाननेका स्वभाव नाश नहीं हो जाता। उसका उपयोग स्वकी ओर है, इसलिये दूसरा ज्ञात नहीं होता है। स्वयं अपने स्वरूपमें लीन है इसलिये ज्ञात नहीं होता है। अपूर्ण ज्ञान है इसलिये क्रमसर (जानता है)। छद्मस्थका ज्ञान क्षयोपशम ज्ञान है। एक बारमें एक ज्ञात होता है। परिणतिमें तो जो प्रत्यभिज्ञान है, अनन्त काल व्यतीत हुआ वह प्रत्यभिज्ञान, वह ज्ञान तो उसमें पडा है। बचपनसे बडा होता है, अनेक प्रकारका ज्ञान उसमें लब्धरूपसे होता है। उसे उपयोगरूप नहीं होता। परन्तु वह सब तो उसमें होता है। जाननेका नाश नहीं होता है। उसे याद आये तो सब याद कर सकता है। उसमें राग तोडनेको कहा जाता है। उसमें कहीं ज्ञानका नाश नहीं होता है।
मुमुक्षुः- वचनामृतमें एक बोलमें आता है कि ज्ञानीकी दृष्टि सतत द्रव्य सामान्य पर रहती है। सतत भेदविज्ञानकी धारा चलती है। भेदविज्ञानकी धारा चले और ज्ञानीकी दृष्टि द्रव्य सामान्य पर एक कालमें रहे। दो बात एकसाथ बने? द्रव्य सामान्य पर ज्ञानीकी दृष्टि रहती है और उस कालमें भेदविज्ञानकी धारा सतत लिखा है, सतत चलती है। ये दो बात...
मुमुक्षुः- दोनों एक समयमें बन सकता है? द्रव्य पर दृष्टि रहनी और भेदज्ञानकी धारा सतत रहनी, दोनों एकसाथ होता है।
समाधानः- एकसाथ हो सकता है। दृष्टि और ज्ञान दोनों एकसाथ रहते हैं। सामान्य स्वभाव पर दृष्टि रहती है और भेदज्ञानकी धारा रहती है। दोनों साथमें रहते हैं। ज्ञान और दृष्टि दोनों एकसाथ कार्य करते हैं। दृष्टि स्व पर जमी है और स्वको जानता और यह मैं नहीं हूँ, ऐसा भी जानता है।
मैं चैतन्य ज्ञायक हूँ और यह विभाव सो मैं नहीं हूँ। यह स्वभाव सो मैं, और विभाव सो मैं नहीं हूँ। ऐसी ज्ञातृत्व धारा चालू रहती है। और दृष्टि, मैं अखण्ड शाश्वत द्रव्य हूँ, ऐसी दृष्टि भी रहती है। दृष्टि और ज्ञान दोनों साथमें रहते हैं। दृष्टि और ज्ञान साथमें रहनेमें कोई विरोध नहीं है। दोनों साथमें रहते हैं, एकसाथ
मुमुक्षुः- भेदविज्ञान तो विकल्प है। तो विकल्प है और निर्विकल्प रहे?
समाधानः- नहीं, निर्विकल्प और विकल्पकी बात नहीं है। दृष्टि तो सविकल्पमें भी रहती है और दृष्टि निर्विकल्पमें भी रहती है। दृष्टि निर्विकल्प स्वानुभूतिके समय