१९८ ही हो और बाहर आये तब न हो, ऐसा नहीं है। दृष्टि तो बाहर उपयोग हो तो भी चैतन्य पर दृष्टि स्थापित ही रहती है। दृष्टि कहीं अन्दर स्वानुभूतिके कालमें दृष्टि हो और बाहर आये तब दृष्टि न हो, ऐसा नहीं है। दृष्टि तो उसका उपयोग बाहर है तो भी दृष्टि तो स्वभावकी ओर होती ही है। दृष्टि और ज्ञान दोनों होते हैं।
दृष्टि निर्विकल्पके समय हो और बाहर आये तब विकल्पकी धारा हो, ऐसा नहीं है। दृष्टि स्वभावकी ओर रहती है और ज्ञान भी स्वभावकी ओर रहता है। यह मैं हूँ और यह मैं हूँ, ये दोनों बात साथमें होती है। और दृष्टि भी रहती है। सविकल्पमें भी रहती है। निर्विकल्पमें तो दृष्टि ज्योंकी त्यों रहती है। विकल्प-ओरसे उपयोग छूट जाता है, निर्विकल्प स्वानुभूतिके (कालमें)। विकल्प-ओर उपयोग (नहीं है), विकल्प छूट जाता है। बाहर आये तो विकल्प है तो भी दृष्टि रहती है। विकल्प न हो तो भी दृष्टि रहती है। बाहर तो विकल्पके साथ दृष्टि और ज्ञान दोनों है। और स्वानुभूतिमें भी दृष्टि और ज्ञान दोनों है, परन्तु विकल्प-ओर उपयोग नहीं है। विकल्प छूट गया है।
मुमुक्षुः- आता है कि समस्त ज्ञानियोंका अभिप्राय द्रव्य सामान्यको लक्ष्यमें लो, द्रव्य सामान्य पर दृष्टि करो, ऐसा लिखा है। समस्त ज्ञानियोंका कहनेका यह मंतव्य है कि द्रव्य सामान्यको लक्ष्यमें लो। द्रव्य सामान्यको लक्षगत करनेका जो भाव है वह विकल्प है, ऐसा लगता है। करो, करनेका भाव तो विकल्प है। अनुभवका आनन्द ऐसे करनेमें कैसे आवे?
समाधानः- उपदेश ऐसा आवे न। उपदेश ऐसा आता है, यह करो, ऐसे पुरुषार्थ करो, ऐसे साधकदशा करो, ऐसे दृष्टि करो, ऐसे निर्विकल्प स्वानुभूति करो। उपदेशमें क्या होता है? उपदेशमें तो करो ऐसा आता है। कहनेका तात्पर्य यह है कि निर्विकल्प स्वानुभूतिमें विकल्प टूट जाता है, तो सहज परिणति होती है। ऐसे तू बराबर ज्ञान करके सहजरूप परिणमित हो जा। ऐसा कहते हैं। करो-करो, पुरुषार्थ प्रेरक वाक्य तो ऐसा ही होता है न। पुरुषार्थकी प्रेरणा (देते हैं)। उपदेशमें क्या होता है?
ऐसे विकल्प तोड दे, स्वरूप-ओर उपयोग कर, स्वरूप-ओर दृष्टि कर, ऐसे पुरुषार्थकी बात आवे। पुरुषार्थके बिना कैसे होता है? करो-करो यानी विकल्प तो साथमें होता है, परन्तु कहनेका आशय ग्रहण करना कि, तू सहजपने अंतरमें परिणम जा। विकल्प तो साथमें (होता है)। कर्तृत्व-वह करनेका तो बीचमें आता है। मैं ऐसा करुँ, मैं ऐसा करुँ, मैं ज्ञानकी ओर उपयोग करुँ, मैं ज्ञाता हूँ, करनेकी बुद्धि बीचमें आये, परन्तु तू सहजरूपसे परिणमित हो जा, ऐसा कहनेका आशय है। ऐसे आशय ग्रहण कर लेना। कहनेमें तो ऐसा ही आये कि तू ऐसा कर। स्वयंको भावनामें ऐसा आये