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समाधानः- पंचमकाल है, किसीको कहाँ दिखाई दे। समाधानः- ... शुद्धात्मा मेरा आत्मा, सब विकल्पसे भिन्न आत्मा कैसे प्रगट होवे? ऐसा आत्माका भेदज्ञान न्यारा जब होवे तब भवका अभाव होता है।
मुमुक्षुः- ...?
समाधानः- तब होता है। अनन्त कालमें .. भवका अभाव होता है। तो भीतरमें सुख और आनन्द प्रगट होता है। ... है नहीं। मैं तो वीतराग स्वभाव हूँ, ये कषायभाव है। वह कोई मेरा स्वभाव नहीं है। भिन्नताका ऐसा विचार करना। पुरुषार्थकी मन्दतासे, एकत्वबुद्धिसे आवेगसे आ जाता है तो पुरुषार्थ पलट देना, आत्माका विचार करना।
मुमुक्षुः- हम तो आत्माको..
समाधानः- रुचि करना। आत्मा-ओरकी रुचि मन्द है। रुचि बाहर जाती है, कषायमय हो जाती है। रुचि करना। आत्माका स्वभाव है वही कल्याणकारी है। और सब दुःखरूप आकुलतामय है। ऐसा विचार करना, निर्णय करना। ऐसी प्रतीत करना।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- आत्माकी रुचि नहीं है। अनादिका अभ्यास है, चला जाता है। रुचि नहीं है। इसलिये भीतरमें जो विचार आता है, आ जाता है। उतनी आत्माकी रुचि नहीं है, देव-गुरु-शास्त्र पर उतना भाव नहीं है। और भीतरमें आत्माकी रुचि नहीं है, इसलिये दूसरा विचार आ जाता है।
मुमुक्षुः- अपना गृहस्थ जीवन भी ऐसा होना चाहिये कि दिन भर वातावरण धार्मिक ही रहे। परन्तु गुरुका (समागम) नहीं मिलता है। गुरु बिना ज्ञान नहीं होता।
समाधानः- ऐसा समागम नहीं मिले तो भीतर-से तैयारी करना, अपने आत्माकी रुचि बढाना। जिनेन्द्र देव, गुरु, शास्त्र हृदयमें रखना और आत्माकी रुचि प्रगट करना।
मुमुक्षुः- प्रवचन सनते हैं, शास्त्र सुनते हैं तो सुनते हैं तो एकदम अलग ही भाव लगते हैं। ऐसा नहीं, ऐसा करना चाहिये।
समाधानः- रुचि कम है न। सच्चा श्रवण मिलता है वह सुनना और आत्माका विचार करना। अपनेआप करना मुश्किल है।