समाधानः- ... बारंबार उसका अभ्यास करने-से स्वानुभूति प्रगट होती है। वही मोक्षका मार्ग है। और वह स्वानुभूति बढते-बढते मुनिदशा और केवलज्ञान (प्रगट होता है)। स्वानुभूतिकी दशा बढते-बढते ही होता है।
इस कालमें गुरुदेव... भगवानके समवसरणमें दर्शन करने जाते हैं। सीमंधर भगवानके। उन्हें तो भगवानका बहुत था तो भगवानके समवसरणमें दिव्यध्वनि (सुनने जाते हैं)। इस कालमें साक्षात देवोंका आगमन होना बहुत मुश्किल है। स्वप्न हो सकते हैं। आये तो दूसरोंको देखना मुश्किल पडे। दूसरे देखे कैसे कि... पहले गुरुदेव आये तो दूसरोंको दिखना मुश्किल पडे।
मुमुक्षुः- थोडी देर तो दिखते हैं।
समाधानः- अभी तो देवोंका आगमन मुश्किल है। ... करना है, उस मार्ग पर जाना है। गुरुदेव समीप ही है। गुरुदेव स्वर्गमें विराजते हैं, इसलिये क्षेत्रसे दूर है। बाकी समीप ही है, ऐसी भावना रखकर वह करने जैसा है। गुरुदेवने मार्ग बताया है वह।
गुरुदेव पधारे, इतनी वाणी बरसायी, वह महाभाग्यकी बात है। इस पंचमकालमें यहाँ पधारे। गुरुदेव तीर्थंकरका द्रव्य यहाँ पधारे और सबको लाभ मिला, महाभाग्य! गुरुदेवने जो कहा उस मार्ग पर (चलना है)। गुरुदेवसे क्षेत्रसे समीप होना हो जाता है, गुरुदेवके मार्ग पर चलने-से।
मुमुक्षुः- मार्ग पर चलनेमें भी कोई साथीदार चाहिये न।
समाधानः- गुरुदेव कहते थे, प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र हैं। स्वयं उपादानसे कर सकता है। साथीदार निमित्त तो होता है, करना तो स्वयंको है। देव-गुरु-शास्त्रका निमित्त होता है। करना तो स्वयंको पडता है, उपादान तो स्वयंका है।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- अर्थात तुझे मिलेगा ही। तेरा उपादान ऐसा तैयार है तो तुझे मिलनेवाला ही है। ज्ञानीकी अर्पणता तेरी उतनी है कि तेरे चैतन्यका स्वभाव पहचानकर अर्पण हो जा कि मोक्ष प्राप्त होगा ही। बाहरसे गुरुको अर्पण और अन्दर चैतन्य स्वभावको