२१४ समझपूर्वककी रुचि होनी चाहिये।
मुमुक्षुः- प्रयोजनभूत ज्ञान यथार्थ हो..
समाधानः- हाँ, प्रयोजनभूत ज्ञान होना चाहिये। सम्यग्दृष्टि भवति नियतं ज्ञान वैराग्य शक्ति, आता है न? सम्यग्दृष्टिको ऐसी ज्ञान- वैराग्यकी शक्ति प्रगट हुयी है कि वह अंतरसे कहीं लिप्त नहीं होता। ऐसा विरक्तका विरक्त रहता है। पूर्वभूमिकामें भी वह तैयारी कर सकता है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- चटपटी लगी हो तो मार्ग खोज ही लेता है।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- मार्गको खोजता ही रहे, चैन-से बैठे नहीं। मार्ग क्यों प्राप्त नहीं होता है? अंतरमें क्यों प्राप्त नहीं होता है? बारंबार-बारंबार अंतर-से स्फूरणा होती ही रहे, क्यों अभी मार्ग प्राप्त नहीं होता है? ऐसी चटपटी अंतर-से लगे कि चैनसे बैठे नहीं, अंतरसे उसे उठती ही रहे। इसलिये मार्ग प्राप्त हुए बिना रहे ही नहीं।
मुमुक्षुः- .. विचार भी बहुत आते हैं, पर..
समाधानः- उसमें धीरा होकर, उसमें आकुलताका काम नहीं है, परन्तु धैर्यसे स्वयं विचार करे तो मार्ग प्राप्त हो। भावना जिज्ञासापूर्वक।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- निराश होनेकी बात ही नहीं है। स्वयं तैयारी करे और प्राप्त न हो, ऐसा बनता ही नहीं। स्वयं ही है, स्वयंका मार्ग है और अपनेमें-से ही प्राप्त हो ऐसा है। कहीं दूर नहीं है, अपना स्वभाव है, परन्तु वह भूल गया है। स्वयं अंतरमें दृष्टि करके यथार्थपने खोजे तो उसे चैन पडे नहीं, तो अंतरमें-से प्राप्त हुए बिना रहे नहीं। कहीं बाहर-से प्राप्त नहीं होता है, अपना स्वभाव है और अपने पास है। अपनेमें-से प्राप्त हो ऐसा है। परन्तु स्वयंको मार्ग नहीं मिलता है।
ऐसे गुरुदेव मिले, ऐसा मार्ग बताया। मार्ग बतानेवाले मिले और स्वयंको प्राप्त न हो, ऐसा बनता ही नहीं। स्वयं तैयारी करे तो अंतरमें-से प्राप्त हो, प्राप्त हुए बिना रहे नहीं। मार्गको जानता नहीं हो तो गोते खाता है। गुरुदेवने ऐसा मार्ग बताया है कि तेरे आत्माको ग्रहण कर। तू असाधारण ज्ञानस्वभावी आत्मा है, आत्मामें ही सब है, उसमें-से ग्रहण कर। मार्ग बताया है और न मिले ऐसा बनता ही नहीं। स्वयं तैयार हो तो प्राप्त हुए बिना रहे नहीं। ... स्वयं भूल गया है। स्वयं ही है, अन्य कोई नहीं है। दृष्टि अनादिसे बाहर है इसलिये बाहर देखता रहता है, अंतरमें देखता नहीं है। अंतरमें देखना उसे मुश्किल पडता है, इसलिये दुष्कर हो गया है।