ट्रेक-
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... स्वभाव उसमें वह देख नहीं सकता है। ज्ञायकमें सब भरा है। लेकिन वह उसे पकड नहीं सकता है। निष्कारण विकल्प तो अनादि अभ्यासके कारण ऐसे ही दौडते रहते हैं। उसका कोई कंट्रोल उस पर (नहीं है)। चैतन्यका अस्तित्व ग्रहण नहीं किया है कि वह मर्यादामें आवे। वहाँ दौड जाता है। .. सहज याद आ जाय। ज्ञायकको याद करना। उसे अंतरसे याद करना मुश्किल पडता है। उसके पीछे लगना, बारंबार- बारंबार वही करता रहे तो उसे समीप जानेका अवकाश है। अस्तित्व ग्रहण हो तो उसका भेदज्ञान हो तो विकल्प... बाकी तो विचार करके पुरुषार्थ करके मन्द करता रहे, परन्तु स्वभावको पहचानकर करे वह यथार्थ होता है।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!