२२२
ये सब ज्ञेय मूर्तिक हैं, ये शरीर भी मूर्तिक हैं। और उसके अलावा जानन तत्त्व है वह मैं हूँ।
समाधानः- वह मैं हूँ, जाननेवाला। वह अनुमान ज्ञान है, भले युक्तिसे है, परन्तु वह विचार करे तो जाननेवाला स्वयं अंतरमें स्वयंको ज्ञात हो रहा है अर्थात स्थूलतासे ज्ञात हो रहा है। जाननेवाला भले अमूर्तिक है परन्तु वह जाननेवाला स्वयं ही है। इसलिये उसे ख्यालमें आ सके ऐसा है कि ये जाननेवाला सो मैं हूँ। जाननेवाला जाननरूप परिणमे अर्थात जाननेवाला उसके मूल स्वभावरूप से वेदनमें नहीं परिणमता है, परन्तु जाननेका जो असाधारण गुण है उस रूप उसका अस्तित्व हो रहा है, वह उसे ख्यालमें अनुमानसे आ सके ऐसा है।
मुमुक्षुः- मतलब ज्ञान उपयोगमें अस्तित्व परोक्षपने नजराता है।
समाधानः- हाँ, परोक्षपने वह ग्रहण कर सके ऐसा है।
मुमुक्षुः- परोक्षपने तो नजराता है, भाईने कहा वैसे, मनके संग जहाँसे कल्लोल उत्पन्न होते हैं, उसका सामान्यपना...
समाधानः- ये जाननेवाला है वह मैं हूँ।
मुमुक्षुः- उसके बाद कोई भूमिका?
समाधानः- जाननेवाले से ऐसा नक्की करे कि यह जाननेवाला है वही मैं हूँ। और वह अकेला जाननेवाला कैसा है? कि उस जाननेवालेमें ये राग, संकल्प, विकल्प आदि जो भी भाव हैं, वह भाव जाननेवालेमें नहीं है। जाननेवाला उससे भिन्न है। जाननेवालेमें ऐसा नहीं होता कि जाननेवाला अकेला जाननेवाला ही होता है, वही सच्चा जाननेवाला है। बाकी उसमें जो राग-द्वेष, संकल्प-विकल्प आदि और मैं कर सकता हूँ, ऐसी जो विकल्पकी जाल है, उस जाल रहित निर्विकल्प तत्त्व वह जाननेवाला सो मैं हूँ। ऐसा न्यारा जाननेवाला हूँ। ये सब मिश्ररूप जाननेवाला ऐसा मैं नहीं हूँ। ऐसा अपना न्यारा अस्तित्व ग्रहण करे और उस जाननेवालेमें टिका रहे कि यह जाननेवाला है वही मैं हूँ और यह मैं नहीं हूँ। यह जाननेवाला मैं और यह मैं नहीं हूँ, ऐसी उसकी भेदज्ञानकी बुद्धि उसमें-से उत्पन्न करे। यदि उसे बराबर निर्णय हुआ हो तो क्षण-क्षणमें वह जाननेवाला मैं और यह विकल्प आये वह मैं नहीं हूँ, मैं उससे भिन्न हूँ। भले विकल्प आता है, परन्तु वह मेरा स्वभाव नहीं है। मेरा स्वभाव मात्र जानना सो मैं हूँ। उस जाननेवालेमें ही सब है।
जाननेवालेमें अनन्त गुण हैं। भले उसे वेदनमें नहीं है, परन्तु द्रव्य अनन्त शक्तिसे भरा जाननेवाला वही मैं हूँ और ये जो राग-द्वेष आदि कषायकी कालिमा वह सब मैं नहीं हूँ। मैं उससे (भिन्न) निर्मल जाननेवाला हूँ। जाननेवाला जाने उसमें भेदज्ञान