Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

२२२ आ जाता है। यथार्थ जाने तो। आगे जाय तो इस प्रकार नक्की करना है।

मुमुक्षुः- आपने कहा था न कि सविकल्प दशामें ऐसे भावभासनमें टिका रहे।

समाधानः- हाँ, टिका रहे कि यह मैं नहीं हूँ, यह मैं हूँ। इस प्रकार टिका रहे। निर्णय करके छोड दे तो छूट जाय। बाकी यह मैं और यह मैं नहीं हूँ।

मुमुक्षुः- टिका रहे तब उसे सच्चा विकल्पात्मक निर्णय कह सकते हैं?

समाधानः- अभी उसे विकल्पात्मक है।

मुमुक्षुः- हाँ, विकल्पात्मक है। परन्तु उसमें भी ज्ञानकी सूक्ष्मता-से ऐसा विकल्पात्मक भावभासन हुआ। फिर भी अभी रुचि पूर्ण न हो तो अभी भी उसे यथार्थ निर्णय होनेमें देर लगे, ऐसा है?

समाधानः- उसे रुचि न हो तो निर्णय करके छूट जाय। इसलिये रुचि प्रबल हो तो निर्णयको टिकाये रखे तो उसका निर्णय यदि आगे कार्य करे कि यह मैं हूँ और यह नहीं हूँ। यह हूँ और यह नहीं हूँ। इस प्रकार उसका निर्णय यदि उसकी रुचि हो तो दृढतापूर्वक निर्णय उसका कार्य करता रहे कि यह मैं हूँ और यह मैं नहीं हूँ। ऐसा भले उसे अभ्यासरूप यथार्थ नहीं है, तो भी उसका कार्य करता रहे तो उसे अभ्यास करते-करते यथार्थ होनेका अवकाश है।

मुमुक्षुः- लेकिन वह भी अभी तो सविकल्प लेना न?

समाधानः- वह सविकल्प है। विकल्पात्मक है। सहज नहीं है। अभी वह बुद्धिपूर्वक करता है।

मुमुक्षुः- आपका ऐसा कहना है न कि सविकल्प निर्णय यथार्थ इस प्रकार टिका रहे और रुचिमें पूर्णरूपसे आत्माको ले तब उसे सविकल्प निर्णय यथार्थ होनेका अवकाश है?

समाधानः- हाँ, सविकल्प होनेका अवकाश है। मुमुक्षुः- निर्विकल्प तो विकल्प टूटकर अंतरमें जाय तबकी बात है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!