Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 223.

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ट्रेक-२२३ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- आपने एक बोलमें कहा है कि उत्कृष्ट मुमुक्षुको मार्ग न मिले तो उलझनमें नहीं आ जाता। वहीं चक्कर लगाता रहे। वहाँ यही रीत है?

समाधानः- वहीं टहेल लगाता रहे।

मुमुक्षुः- यही रीत न?

समाधानः- हाँ, यही रीत। यथार्थ निर्णय करके वहीं अभ्यास करता रहे कि यह ज्ञायकका अस्तित्व जो निर्मल अस्तित्व है वही मैं हूँ, यह मैं नहीं हूँ। जो शुद्धतासे भरा है वही मैं हूँ, यह मैं नहीं हूँ। ज्ञायककी महिमा लगी हो, ज्ञायक वही मैं, उसीमें सर्वस्वता लगी हो तो बारंबार वहाँ अभ्यास करता ही रहे, बारंबार टहेल लगाता ही रहे।

मुमुक्षुः- ऐसा सब मेरेमें है, वही स्वरूपकी महिमा?

समाधानः- मेरा सर्वस्व मेरेमें है, बाहर कुछ नहीं है।

मुमुक्षुः- भले उपयोग सूक्ष्म होकर कार्य न कर सकता हो, तो भी प्रतीतिमें, इसीसे मुझे लाभ है, वह वर्तमान पात्र है। तो जीवन आत्मामय बना लेना, यह अनुभव होने पूर्वकी आप बात करते हो। जिज्ञासुकी भूमिकामें जीवन आत्मामय बना लेना उसका अर्थ क्या?

समाधानः- एक आत्मा ही चाहिये, दूसरा कुछ नहीं चाहिये। आत्मामय यानी उसमें ज्ञायकका अस्तित्व वह मैं, वह मुझे कैसे ग्रहण हो? बस, उसीका अभ्यास करते रहना। आत्मामय जीवन। दूसरा कुछ नहीं चाहिये। एक आत्मा चाहिये। इसलिये आत्मा कैसे प्राप्त हो? ज्ञायक कैसे ग्रहण हो? उस मय जीवन-आत्मामय। सर्व कार्यमें उसे प्रयोजन आत्माका है। मुझे आत्मा कैसे प्राप्त हो? वह आत्मामय जीवन।

मुमुक्षुः- सर्व कार्यमें आत्माका प्रयोजन रहना चाहिये?

समाधानः- प्रयोजन आत्माक रहना चाहिये।

मुमुक्षुः- आत्माका (प्रयोजन) रहना वह, जीवन आत्मामय करे लेनेका अर्थ है।

समाधानः- जीवन आत्मामय कर लेना।

मुमुक्षुः- उपयोग सूक्ष्म होकर..

समाधानः- उसे ग्रहण करनेमें देर लगे, परन्तु उसका हेतु यह है। यह ज्ञायक