ઉત્કૃષ્ટ મુમુક્ષુને માર્ગ ન મળે તો તે મુંઝાય નહીં એટલા એટલામાં ટહેલ માર્યા કરે?શું આ જ માર્ગ પામવાની રીત છે? 0 Play उत्कृष्ट मुमुक्षुने मार्ग न मळे तो ते मुंझाय नहीं एटला एटलामां टहेल मार्या करे?शुं आ ज मार्ग पामवानी रीत छे? 0 Play
‘ભલે ઉપયોગ સૂક્ષ્મ થઈને કાર્ય ન કરી શકે પણ પ્રતીતિ આવ્યાથી જ મને લાભ છે એ વર્તમાન પાત્ર છે’ ‘જીવન આત્મામય બનાવી લેવું’..... જીવન આત્મામય બનાવી લેવું એટલે શું? 1:00 Play ‘भले उपयोग सूक्ष्म थईने कार्य न करी शके पण प्रतीति आव्याथी ज मने लाभ छे ए वर्तमान पात्र छे’ ‘जीवन आत्मामय बनावी लेवुं’..... जीवन आत्मामय बनावी लेवुं एटले शुं? 1:00 Play
પ્રત્યેક સમયમેં વિકલ્પ ઉઠા હી કરતે હૈં તો ક્યા કરે? 5:05 Play प्रत्येक समयमें विकल्प उठा ही करते हैं तो क्या करे? 5:05 Play
દૃષ્ટિ બાહર સન્મુખ રહતી હૈ ઉસકો અંતરમુખ કરના ઉસ સમ્બન્ધી 6:30 Play दृष्टि बाहर सन्मुख रहती है उसको अंतरमुख करना उस सम्बन्धी 6:30 Play
આત્મા પકડમેં આતા હી નહીં હૈ? ક્યા કરે? 7:50 Play आत्मा पकड़में आता ही नहीं है? क्या करे? 7:50 Play
શુદ્ધાત્મા સાધક ધર્માત્માને એક સમયમાં –આસ્રવરૂપ- સંવરરૂપ-નિર્જરારૂપ ભાવો પ્રવર્તે છે તેમાં આસ્રવનું ષટ્કારકરૂપ પરિણમન કોના આધારે છે? તથા સંવર- નિર્જરારૂપ ભાવોનું ષટ્કારકરૂપ પરિણમન કોના આધારે છે તે કૃપા કરીને સમજાવશો. हमारे यहाँ मंदिर नहीं है, तो श्चेताम्बर मंदिरमें जाये तो क्या नुकशान होगा? हम देव-गुुरु-शास्त्रकी बात सुनते हैं, समझते हैं फ़िर भी क्या नुकशान होगा? 13:50 Play शुद्धात्मा साधक धर्मात्माने एक समयमां –आस्रवरूप- संवररूप-निर्जरारूप भावो प्रवर्ते छे तेमां आस्रवनुं षट्कारकरूप परिणमन कोना आधारे छे? तथा संवर- निर्जरारूप भावोनुं षट्कारकरूप परिणमन कोना आधारे छे ते कृपा करीने समजावशो. हमारे यहाँ मंदिर नहीं है, तो श्चेताम्बर मंदिरमें जाये तो क्या नुकशान होगा? हम देव-गुुरु-शास्त्रकी बात सुनते हैं, समझते हैं फ़िर भी क्या नुकशान होगा? 13:50 Play
(પ્રશ્નનો સારાંશ) કોઈ સામાજિક કારણ અનુસાર શ્વેતામ્બર મંદિરમાં જવું પડે તો દોષ ખરો? 17:30 Play (प्रश्ननो सारांश) कोई सामाजिक कारण अनुसार श्वेताम्बर मंदिरमां जवुं पडे तो दोष खरो? 17:30 Play
मुमुक्षुः- आपने एक बोलमें कहा है कि उत्कृष्ट मुमुक्षुको मार्ग न मिले तोउलझनमें नहीं आ जाता। वहीं चक्कर लगाता रहे। वहाँ यही रीत है?
समाधानः- वहीं टहेल लगाता रहे।
मुमुक्षुः- यही रीत न?
समाधानः- हाँ, यही रीत। यथार्थ निर्णय करके वहीं अभ्यास करता रहे कि यह ज्ञायकका अस्तित्व जो निर्मल अस्तित्व है वही मैं हूँ, यह मैं नहीं हूँ। जो शुद्धतासे भरा है वही मैं हूँ, यह मैं नहीं हूँ। ज्ञायककी महिमा लगी हो, ज्ञायक वही मैं, उसीमें सर्वस्वता लगी हो तो बारंबार वहाँ अभ्यास करता ही रहे, बारंबार टहेल लगाता ही रहे।
मुमुक्षुः- ऐसा सब मेरेमें है, वही स्वरूपकी महिमा?
समाधानः- मेरा सर्वस्व मेरेमें है, बाहर कुछ नहीं है।
मुमुक्षुः- भले उपयोग सूक्ष्म होकर कार्य न कर सकता हो, तो भी प्रतीतिमें, इसीसे मुझे लाभ है, वह वर्तमान पात्र है। तो जीवन आत्मामय बना लेना, यह अनुभव होने पूर्वकी आप बात करते हो। जिज्ञासुकी भूमिकामें जीवन आत्मामय बना लेना उसका अर्थ क्या?
समाधानः- एक आत्मा ही चाहिये, दूसरा कुछ नहीं चाहिये। आत्मामय यानीउसमें ज्ञायकका अस्तित्व वह मैं, वह मुझे कैसे ग्रहण हो? बस, उसीका अभ्यास करते रहना। आत्मामय जीवन। दूसरा कुछ नहीं चाहिये। एक आत्मा चाहिये। इसलिये आत्मा कैसे प्राप्त हो? ज्ञायक कैसे ग्रहण हो? उस मय जीवन-आत्मामय। सर्व कार्यमें उसे प्रयोजन आत्माका है। मुझे आत्मा कैसे प्राप्त हो? वह आत्मामय जीवन।
मुमुक्षुः- सर्व कार्यमें आत्माका प्रयोजन रहना चाहिये?
समाधानः- प्रयोजन आत्माक रहना चाहिये।
मुमुक्षुः- आत्माका (प्रयोजन) रहना वह, जीवन आत्मामय करे लेनेका अर्थ है।
समाधानः- जीवन आत्मामय कर लेना।
मुमुक्षुः- उपयोग सूक्ष्म होकर..
समाधानः- उसे ग्रहण करनेमें देर लगे, परन्तु उसका हेतु यह है। यह ज्ञायक