१४६ है। ज्ञायककी बात आये। एक द्रव्य दूसरे द्रव्यका कुछ करता नहीं ऐसा आये, द्रव्य- गुण-पर्याय अपने आपसे स्वतंत्र है। दूसरेके स्वतंत्र है। क्रिया, कर्ता एवं कर्म सब स्वयंका है, ऐसा भी आये। और निमित्त करवाता है, ऐसा भी आये। परसंग ही करवाता है, ऐसा भी आये। उन दोनोंका मेल स्वयंको करना पडता है। तू निमित्त छोड, ऐसा सब आये, उसका मेल स्वयंको करना पडता है।
मुमुक्षुः- मेल कैसे करना? दोनों शास्त्रके कथन है।
समाधानः- सब आचायाके कथन हैं। व्यवहार शास्त्रमें, तत्त्वार्थ सूत्र आदिमें व्यवहारकी बात आये और अध्यात्ममें अध्यात्मकी बात आये। उन सबका मेल करना पडता है। वह आचार्य भी छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें झुलने वाले थे, व्यवहारकी बात करते हैं। अध्यात्मकी बात करते हैं, वह भी छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें झुलने वाले थे। दोनों आचार्य इस प्रकार कहते हैं, इसलिये उसका स्वयंको मेल करना पडता है। अपेक्षा समझनी।
आचार्यदेव कहते हैं, कोई द्रव्यदृष्टिकी बात, कोई पर्यायकी बात करे, कोई निमित्तकी बात करे, कोई उपादानकी बात करे, अनेक जातकी बात आती है। (स्वयं) मेल कर लेता है, वह कोई नहीं करवाता। अन्दर लगन लगी हो वही अन्दर मेल कर लेता है। स्वयं ही। वस्तु स्वयं अनेकान्तमय मूर्ति-अनेकान्त स्वरूप है। अनन्त धर्मसे भरी अनेकान्तमय मूर्ति (है)। इसलिये उसकी सभी बातें अनेकान्तमय होती हैं। द्रव्यदृष्टिकी, पर्यायकी अनेक प्रकारकी बात होती है, उसमेंसे स्वयंको मेल करना पडता है।
वस्तु द्रव्य, गुण और पर्याय वाली है। अकेला द्रव्य है, गुण नहीं है, पर्याय नहीं है ऐसा नहीं है। द्रव्य, गुण, पर्याय सब द्रव्यमें है। भेद अपेक्षा आये, अभेद अपेक्षा आये।
... शास्त्रमें क्या आता है, गुरुदेवने क्या बताया है, उनके प्रवचन, मूल शास्त्र समयसार, प्रवचनसार दोनोंमें आता है कि आत्माका स्वरूप क्या है, जाननेके लिये स्वाध्याय करना प्रयोजनभूत है। वह सब होता है, परन्तु करना अंतरमें है। गुरुदेवने मार्ग दर्शाया, उसका साथमें ध्येय होना चाहिये। नहीं हो तबतक यह सब होता है। पूजा, स्वाध्याय, भक्ति। और सच्चा समझ, आगे जानेके लिये सच्ची समझ और अंतरकी लगनी और वह सच्ची समझ-सच्चा ज्ञान होनेके लिये स्वाध्याय जरूरी है। (आत्माका) ध्येय रखना, उसमें सर्वस्व नहीं मान लेना। करनेका अंतरमें है, वह जबतक नहीं होता तबतक स्वाध्याय, पूजा, भक्ति आदि होता है।
.. अनन्त कालमें बहुत हुआ। सबको ऐसा (भाव रहता है कि), आत्माका करना, लगनी लगाये, ध्येय ऐसा रहता है और स्वाध्याय आदि सब करता है। दर्शन, पूजन सब होता है। जहाँ गुरुदेवका मुमुक्षु मण्डल है वहाँ सब होता है। सर्वस्व आत्मामें