२३२ तू तृप्त हो, उसीमें सब है।
फिर निर्णय न हो तो चारों ओरका विचार करे, परन्तु प्रयोजन तो एक ज्ञायकका है। जो होगा सब आ जायगा। उसमें शुद्धात्माकी पर्याय शुद्ध परिणमेगी। अंश परिणमेगा, उसमें भेदज्ञान होगा, उसमें आस्रव, संवर सब आ जायगा। वह तो सहज आ जायगा। परन्तु एक ज्ञायकको ग्रहण कर तो उसमें सब आयगा।
साधकदशामें जो हो वह सब आ जाता है। उसकी विशेष शुद्धि होती है, निर्जरा होती है और उसमें विशेष लीन हो तो वीतरागता केवलज्ञान होता है। उसमें मुनिदशा (आती है)। ज्ञायकमें ही सब है। स्वानुभूतिमें। और वह स्वानुभूति भी ज्ञायकको ग्रहण करने-से ही होती है। ज्ञायकको ग्रहण करके उसकी भेदज्ञानकी धारा, ज्ञायककी धारा सहज करता जाय तो उसमें स्वानुभूति भी उसी मार्गमें होती है-ज्ञायकको ग्रहण करनेसे। ग्रहण नहीं होता है, इसलिये उसके चारों ओर विकल्प दौडते रहते हैं। ज्ञायकको ग्रहण करना।
मुमुक्षुः- वर्तमानमें, हम सब भाई यहाँ बैठे हैं, हम जो कुछ सुनते हैं, ... सुनते हैं परन्तु ऐसे मुखसे सुनते हैं कि जो ज्ञानी नहीं है। उसमें हम दूसरे रास्ते पर चढ जायें (तो)? क्योंकि हमें सामने जो प्ररुपणा (करते हैं), हम जिनको सुनते हैं, वह प्ररूपणा करनेवाले ज्ञानी तो है नहीं, ज्ञानीके वचनामृत है, परन्तु ज्ञानीके वचनामृत सिर्फ पढते नहीं है, उसके हृदयमें जो कुछ विचार आते हैं वह हमारे सामने प्रदर्शित करता है। क्योंकि गुरुदेवकी वाणी स्वतंत्र रूपसे विचारनेकी शक्ति किसीकी होती है, सबकी नहीं होती। ... आध्यात्मिक प्ररूपणा होती हो और उसमेंसे..
समाधानः- जो सच्चा मुमुक्षु होता है, जिसे सत ग्रहण करना है वह कहीं रुकता नहीं। वह सच्चा निर्णय कर लेता है। वह सुनने आये उसमें जिसे जिज्ञासा होती है कि मुझे आत्माका (हित) करना है, ज्ञायकका भेदज्ञान करना है, वह कहीं रुकता नहीं, सत्य ग्रहण कर लेता है।
मुमुक्षुः- आपने कहा था, मुमुक्षु भले सच्चा मुमुक्षु न कहें, मैं जो बात करता हूँ, परन्तु वह मुमुक्षु ज्ञानके लोभसे, गुरुदेवने कहा है कि वह स्वयं तो नया है अथवा पुराना हो, जो भी हो, परन्तु अभी उसे ज्ञानमें पूरा पकडमें नहीं आया हो। और प्ररूपणा ऐसी आती हो कि उसे ऐसा लगे कि यह गुरुदेवकी ही वाणी है और ज्ञानका लोभ है। करने जैसा तो आपने कहा उतना ही, अधिक जाननेकी कोई आवश्यकता नहीं है। मुझे तो ऐसा लगता है, कुछ सुननेकी जरूरत नहीं है, गुरुदेवकी टेपके अलावा और आपने कहा कि अपने अन्दर आसपास चक्कर लगाता रह, वही काम करने जैसा है। चौबीस घण्टे एक ही काम, जितना समय मिले उसमें सतका संग अर्थात अंतरका