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जो संग है उसीका संग करने जैसा है। ज्ञानके लोभसे अनादिकी आदत है, कुछ- कुछ नया-नया जाननेकी, नये न्याय उसमें फिसल जाता है। ... स्पष्ट कहूँ तो हम तो बन्द कर देना चाहिये। मुझे तो ऐसा होता है कि बन्द कर देना चाहिये। यदि ऐसा लगता हो तो। मुुमुक्षुमें उतनी लायकात न हो कि उसमें-से वह सत्य निकाल सके। उतना ज्ञानका क्षयोपशम भी न हो।
समाधानः- बाहरके संयोगमें मैं क्या कहूँ? स्वयं अपना समझ लेना। स्वयंको नुकसान होता है ऐसा लगे तो स्वयंको अपना समझ लेना। ऐसा लगे कि मुझे नुकसान हो रहा है, व्यक्तिगतरूपसे, तो स्वयंको नुकसान होता हो तो छोड देना। बाकी बाहरके संयोगमें सबको रुचे ऐसा करे, उसमें मैं हाँ-ना कैसे कहूँ? स्वयंको अपने लिये समझ लेना कि मुझे नुकसान होता है। सच्चा जिज्ञासु कहे कि मैं जहाँ-तहाँ रुक जाता हूँ कि यहाँ-से जानू, यहाँ-से जानू ऐसा कर-करके रुक जाता हूँ, मुझे उलझन हूँ, उसके बजाय गुरुदेवकी वाणीमें-से मैं सत्य समझु, इस तरह सिर्फ अपने लिये हो तो स्वयं छोड देना, अपने लिये।
समाधानः- ... प्रकाश और अन्धकार, कितना फर्क है। प्रकाश प्रकाश .. अग्निकी क्रिया उष्णतारूप ही होती है। बर्फकी क्रिया ठण्डकरूप होती है, दोनों एक नहीं हो सकते। पानीकी शीतलता और अग्निकी उष्णता एक नहीं होते। स्थूल दृष्टान्त है।
वैसे ज्ञान ज्ञानरूप और क्रोध क्रोधरूप (रहते हैं)। लेकिन स्वयं ही उसमें तन्मय है। परन्तु स्वयं स्वयंको जान नहीं सकता है। पर्याय ऐसी बाहर भटकती रहती है। बाहरकी परिणतिके कारण अंतरमें देखता नहीं है। डोर, ज्ञानकी डोर कहाँ-से आयी है उस मूल तलको देखता नहीं है। ... देखनेमें तन्मय हो जाता है। भले आकुलता आकुलतामें बाहरका देखता रहता है।
लोग दर्पणमें देखे न कि दर्पणमें क्या दिखता है? उसमें चित्र-विचित्रता देखते हैं। परन्तु दर्पण एकसमान है, उस एकसमान दर्पण पर दृष्टिके जानेके बजाय लोग दर्पणमें क्या-क्या दिखता है, (वह देखनेमें रुक जाते हैैं)। जीवको अनादिसे ऐसा भ्रम हो गया है कि ये ज्ञेय क्या है? परन्तु उसमें एकसमान क्या है? किसमें यह ज्ञात होता है? यह वस्तु क्या है? उसका लोग विचार करनेके बजाय, दर्पणमें दिखता क्या है? अनेक जातकी वस्तुएँ दिखती है, उन वस्तुओंको देखनेमें पड जाता है।
चिडिया उसमें देखे तो दूसरी चिडिया कहाँ-से आ गयी? चिडियाको देखने लग जाता है। लेकिन यह बीचमें दर्पण जड है, उसे नहीं देखता। चिडिया उसीमें चोँच मारता है। अन्दर क्या दिखता है, उसीमें भटकता रहता है। परन्तु किसमें दिखता है और क्या वस्तु है? उसे कोई नहीं देखता। उसमें अनेक प्रकारके ज्ञेयोंको देखनेके भ्रममें,