Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

२३८

समाधानः- ज्ञायक दर्शाया है। कर्ताबुद्धि, उसे स्थूलपने लगे कि मैं कर नहीं सकता हूँ। परन्तु अन्दरमें जबतक ज्ञायक ज्ञायकरूप नहीं हुआ है, तबतक उसे अंतरमें कर्ताबुद्धि पडी है। उसके अभिप्रायमें। जो-जो विकल्प आये, विकल्पके साथ उसकी कर्ताबुद्धि जुडी है। जब यथार्थ ज्ञायक ज्ञायकरूप परिणमे, ज्ञाता हो, तब उसे कर्तृत्व छूटता है। तब उसकी स्वामित्वबुद्धि यथार्थ रूपसे अंतरमें-से तब छूटती है। पहले उसे विचारसे छूटे कि मैं कर्ता नहीं हूँ। मैं जाननेवाला हूँ। परन्तु अंतरमें जब यथार्थ परिणमन हो-ज्ञायक ज्ञायकरूप हो-तब उसका कर्तृत्व छूटता है।

मुमुक्षुः- सबको जाननेवाला ज्ञान आत्माका लक्षण है?

समाधानः- वह आत्माका लक्षण तो है, ज्ञेयको जानता है वह ज्ञान तो है, परन्तु वह दृष्टिकी भूल है कि मैं ज्ञेयको जानता हूँ। दृष्टिकी भूल है। ज्ञान तो ज्ञान है, उसमें दृष्टिकी भूल है। आत्माका लक्षण तो है, लेकिन दृष्टिकी भूल है कि मैं ज्ञेयको... रागमिश्रित हो जाता है। उसमें रागको दूर करके, ज्ञेयको भिन्न करके अकेले ज्ञानको ग्रहण करे तो ज्ञान लक्षण तो आत्माका है।

मुमुक्षुः- उससे भिन्नता कैसो होगी ज्ञेयाकार ज्ञानसे? जो सामान्य ज्ञान है। आपका कहना ऐसा है कि सामान्य ज्ञान आत्माका लक्षण है। ज्ञेयाकार ज्ञेयमिश्रित जो है वह आत्माका लक्षण नहीं है।

समाधानः- नहीं। भिन्न-भिन्नतावाला ज्ञान, वह ज्ञान मेरा मूल लक्षण नहीं है। मूल लक्षण तो एक जाणक तत्त्व, जाननेवाला तत्त्व है वह मैं हूँ। उसको ग्रहण करना। जाननेवाला जो सामान्य जाननेवाला.. जाननेवाला.. जाननेवाला जो वस्तुका मूल स्वभाव है उसको ग्रहण करना, उसका अस्तित्व ग्रहण करना। उसमें इस ज्ञेयको जाना, इस ज्ञेयको जाना ऐसा नहीं। स्वतःसिद्ध जाननेवाला है। अनन्त शक्ति जिसमें जाननेकी है, वह जाननेवाला तत्त्व है वह मैं हूँ। उसको ग्रहण करना।

मुमुक्षुः- जो जाननेवाला तत्त्व है, वह तो लक्ष्य हो गया।

समाधानः- हाँ, लक्ष्य।

मुमुक्षुः- और लक्षण क्या है? ज्ञानसामान्य, ज्ञेयाकार ज्ञान नहीं? ज्ञेयाकारमें जो सामान्य ज्ञान है (वह)?

समाधानः- सामान्यको ग्रहण करना। विशेष ग्रहण नहीं करके, विशेष द्वारा सामान्यको ग्रहण करना। जो दृष्टान्त आता है न? बादलमें जो प्रकाशके किरण दिखाई देते हैं, उस किरणके पीछे पूरा सूर्य अखण्ड है, उसको ग्रहण करना। क्षयोपशम ज्ञानका भेद जो देखनेमें आता है, उस भेदको ग्रहण नहीं करके मूल सूर्यको ग्रहण करना। बादलमें जो किरणें हैं, वह है तो सूर्यके किरण, परन्तु भेद-भेद किरण मात्र मूल वस्तु नहीं