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है। मूल वस्तु पूरा द्रव्य (नहीं है)। वह किरण कहाँ-से निकलता है? उस द्रव्यको ग्रहण करना।
जो बादल है, उसमें जो प्रकाशकी किरणें दिखती हैं, (वह मूल वस्तु नहीं है)। मूल सूर्यको ग्रहण करना। प्रकाशके किरण उसे छिन्न-भिन्न नहीं करते। वह प्रकाश सूर्यको दिखाते हैं। उसको दिखाते हैं। ऐसे क्षयोपशमज्ञानके भेद हैं, वह मूल वस्तुको दिखाते हैं। उसको ग्रहण करना।
मुमुक्षुः- खण्ड खण्ड ज्ञान भी अखण्ड वस्तुको दिखाता है।
समाधानः- हाँ, अखण्ड वस्तुको दिखाता है, उसको ग्रहण करना।
मुमुक्षुः- तो खण्ड खण्ड ज्ञानको ना देखकरके अखण्ड आत्माको देखना।
समाधानः- अखण्ड आत्माको देखना चाहिये।
मुमुक्षुः- खण्ड खण्ड ज्ञानके द्वारा अखण्ड आत्मा देखा जा सकता है?
समाधानः- देख सकता है। दृष्टि अखण्ड पर (जाती है)। देख सकता है। उसका अभिनन्दन करते हैं, अखण्डको तोडता नहीं है, वह अखण्डको दिखा सकता है। लक्षण द्वारा लक्ष्य देखनेमें आता है।
मुमुक्षुः- खण्ड खण्ड ज्ञानके द्वारा अखण्ड आत्मा जाना जा सकता है?
समाधानः- जान सकता है। लक्षणसे लक्ष्य पहचाननेमें आता है। खण्ड खण्ड ज्ञानसे दिखनेमें न आवे तो स्वयं.. लक्षण और लक्ष्य, वह तो ज्ञानका लक्षण है। वह तो स्वतःसिद्ध अपने-से अपनेको जानना। खण्डको गौण करके जानो तो अपने आपसे अपनेको जाना। परन्तु व्यवहार-से लो तो खण्डसे अखण्ड जाना जाता है। व्यवहारसे ऐसा बीचमें खण्ड आता है।
समाधानः- ... वेदना भिन्न और आत्मा भिन्न है। आत्माका स्मरण करना। ज्ञायक आत्मा है उसका भेदज्ञानका प्रयत्न करना। यह करनेका गुरुदेवने कहा है। विकल्पसे भिन्न आत्मा है उसे पहचाननेका प्रयत्न करना। वेदना शरीरमें आती है, आत्मामें आती नहीं है। आत्मा तत्त्व अत्यंत भिन्न है। देव-गुुरु-शास्त्रके सान्निध्यमें तो आप पहले- से रहे हो। और वही संस्कार (है), सचमूचमें तो वही करनेका है।
मुमुक्षुः- उनकी शरण है और आपकी शरण है।
समाधानः- ये सब वाणी मिली, वह महाभाग्यकी बात है। ऐसी वाणी मिलनी और ऐसा मार्ग बतानेवाले गुरु मिलना मुश्किल है। गुरुदेवने कहा, एक चैतन्य आत्माका आलम्बन करना। बाकी सब तो विभाव है, विकल्प है। उसका आलम्बन (छोडना)। उसमें ज्ञान, आनन्द सब भरा है।
चत्तारी मंगलं, अरिहंता मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपणत्तो धम्मो मंगलं।