Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1474 of 1906

 

ट्रेक-

२२५

२४१

मुमुक्षुः- दूसरा एक उसमें आता है, ज्ञान परको जानता है, ज्ञान स्वको जानता है और ज्ञान स्व-परको जानता है। तो तीन प्रकारका ऐसा ज्ञानका परिणमनके कालमें (होता है)। तो स्वानुभवके अन्दर जो छद्मस्थ अवस्था है, तो स्वपरप्रकाशकपना तो स्वानुभवमें नहीं बन पायगा, वह कैसे होगा?

समाधानः- पर-ओर उपयोग नहीं है। इसलिये परज्ञेयको नहीं जानता है। परन्तु अपने स्वमें उपयोग है, स्व पदार्थको जानता है। अपने अनन्त गुण और अपनी पर्यायको जानता है। इसलिये स्वपरप्रकाशक अपनेमें होता है। ज्ञेय तो बाह्य उपयोग नहीं है इसलिये नहीं जानता है। अपनेमें जो अनन्त गुण और अपनी पर्यायको जानता है। पदार्थ और अपने गुण-पर्याय, ऐसा स्वपरप्रकाशक अनुभवके कालमें ऐसा स्वपरप्रकाशक होता है।

मुमुक्षुः- उस कालमें स्व ही आया।

समाधानः- स्व आया। परन्तु गुणको और पर्यायको जानता है, इसलिये उसको स्वपरप्रकाशक कहनेमें आया। इस अपेक्षासे कहनेमें आता है।

मुमुक्षुः- लोकालोकका और स्वका ज्ञानचेतना अनन्त गुणमयका तो केवलज्ञानादि प्रत्यक्ष..

समाधानः- वह तो केवलज्ञानमें होता है। छद्मस्थका उपयोग बाहरमें जाय तो भीतर अंतरमें आता है। तो बाहरका उपयोग नहीं है। इसलिये परको नहीं जानता है, स्वको जानता है। परन्तु अपने गुण-पर्यायको जानता है। केवलज्ञान तो वीतराग हो गया इसलिये अपने अनन्त गुण-पर्याय और परके अनन्त गुण-पर्याय, सबको जानता है। उसको उपयोग देना नहीं पडता, वह तो सहज जानता है। सहज परिणति हो गयी, अपनेमें लीन हो गया। ज्ञानका जैसा स्वभाव है, वैसा जाननेका स्वभाव प्रगट हो गया। तो क्रम-क्रमसे उपयोग देना पडता है (ऐसा नहीं रहा), क्रम-क्रमसे उपयोग केवलज्ञानीको देना नहीं पडता। इसलिये सहज अपने स्वरूपमें रहकर सब सहज जानता है। उपयोग देना नहीं पडता। उपयोग नहीं देते हैं, तो भी जानते हैं। ऐसा प्रत्यक्ष ज्ञान हो गया। क्रम-क्रम उपयोग नहीं देना पडता।

छद्मस्थको क्रम-क्रमसे उपयोग देता है, इसलिये ऐसा क्रम पडता है। बाह्यको जाने, बाहर लक्ष्य नहीं होवे तब भीतरको जानता है। छद्मस्थको उपयोग क्रम-क्रमसे होता है न। एक क्रम पडता है तो बाहरको जानता है। अंतरमें जाने तो बाहर उपयोगमें क्रम पडता है। केवलज्ञानीको क्रम नहीं पडता है। लेकिन उसका स्वभाव जो स्वपरप्रकाशक है उसका नाश नहीं होता। वह तो केवलज्ञानमें प्रत्यक्ष हो गया। परन्तु छद्मस्थ अवस्थामें स्वपरप्रकाशकका नाश नहीं होता है। बदलता है। बाहरमें जाय तो बाहरको जाना, अंतरमें जाय तो अंतरको जाना।