Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 226.

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ट्रेक-२२६ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- आप कहते हो, अन्दरसे चैतन्यका भरोसा आना चाहिये। वह कैसे आवे?

समाधानः- अंतरमें-से अपनी तैयारी हो, निज स्वभावकी महिमा आये कि यह मैं हूँ और यह मैं नहीं हूँ, ऐसी महिमा आये तो विश्वास आवे।

मुमुक्षुः- मोक्षमार्ग प्रकाशकमें टोडरमलजी साहबने पीछे स्वानुभवके विषयमें दिया है कि जब ज्ञानी स्वरूप ध्यानमें जाता है, तब बाहरमें शब्दादिका विकार आदि जाननेमें नहीं आता है। तो मान लो, बन्दुक की आवाज हो रही है या बाहरमें कोई मनुष्य बोल रहा हो, यदि स्वरूप ध्यान लग गया हो तो उसको उस समयमें आवाजका सम्बन्ध टूट जाता होगा। अगर ख्यालमें आता है तो शुद्धउपयोग नहीं बन पाया।

समाधानः- बाहर कुछ होवे तो, शुद्धउपयोगमें लीन होे तो उसको कुछ मालूम नहीं पडता। बाहर उपयोग नहीं है इसलिये मालूम नहीं पडता। ऐसा लीन हो जाता है, स्वभावमें ऐसा लीन हो जाता है कि बाहरमें कुछ भी होवे उसको ख्याल नहीं रहता। और स्वानुभूतिमें इतना लीन हो जाता है कि बाहर कुछ भी होवे, तो ख्याल नहीं रहता। मालूम नहीं पडता है। स्वभावमें लीन हो जाता है।

छद्मस्थका उपयोग जहाँ जाता है, स्वमें जाता है तो स्वमें लीन हो गया है। स्वभाव चैतन्यमूर्ति ज्ञान, आनन्दसे भरा है उसका वेदन होता है। बाहरका ख्याल नहीं रहता है। कोई आवाज होती है, ऐसा होता है तो भी ख्याल नहीं रहता।

मुमुक्षुः- काल थोडा होता है, उससे पलट जाता है तो फिर ख्यालमें आ जाता होगा?

समाधानः- हाँ, फिर ख्यालमें आता है। अंतर्मुहूर्तका काल है। फिर पलट जाय तो ख्यालमें आता है।

मुमुक्षुः- मुनिको संयम, नियम और तप सबमें आत्मा समीप ही रहता है।

समाधानः- "संयम, नियम ने तप विषे आत्मा समीप छे'। आत्मा समीप रहता है।

मुमुक्षुः- यहाँ संयमका अर्थ क्या अंतर्मुख स्वसन्मुखताका वेदन या बाहरका कैसे बैठता है?