Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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मुमुक्षुः- ८७ बोलमें।

समाधानः- शुभसे बात की है। मुझे उसके साथ क्या प्रयोजन है? मुझे आत्माके साथ प्रयोजन है, बाहरके साथ प्रयोजन नहीं है। शुभ भूमिकाके अनुसार होते हैं। उसकी विशेषता नहीं है। वह तो भूमिका अनुसार होते हैं। जीव अटक जाता है तो शुभमें अटक जाता है। मुझे किसीका प्रयोजन नहीं है। मुझे आत्माका प्रयोजन है।

मुमुक्षुः- आपके जातिस्मरण ज्ञानमें हम पामरोंका भी उद्धार आया होगा।

समाधानः- जो स्वरूप समझे उसका उद्धार होता है। जो आत्माका स्वरूप समझे, भेदज्ञान करे, उसका उद्धार-उसका भवका अभाव होता है। आत्माका स्वरूप समझे, उसमें लीनता करे तो उसको आनन्दका वेदन होता है, स्वानुभूति होती है। आंशिक मुक्ति तो जब स्वानुभूति होती है तब आंशिक मुक्ति होती है। विशेष मुक्ति तो आगे बढे तो मुनिओंको छठवें-सातवें गुणस्थानमें झुलते हैं तो उन्हें विशेष आनन्दका (वेदन होता है), विशेष मुक्त दशा होती है। पूर्ण मुक्ति तो केवलज्ञान होता है तब होती है। बादमें सिद्ध दशा होती है। जो आत्माका करता है, उसको भवका अभाव होता है।

मुमुक्षुः- त्रिकाल स्वभावको उपादेयपने ग्रहण करता है या त्रिकालको मात्र जानता है? अनुभवके कालमें ज्ञान स्वसन्मुख हुआ। स्वसन्मुख ज्ञायक स्वभावको पकडता है तो ज्ञायक स्वभावको उपादेयपने ग्रहण करता है या मात्र त्रिकाली ज्ञायकको ज्ञान जानता है?

समाधानः- उपादेयपने जानता है, उपादेयपने। दृष्टि और ज्ञान दोनों उपादेयपने (ग्रहण करते हैं)। ज्ञान दोनों जानता है। ज्ञान अपने त्रिकाल स्वभावको और जो गुणभेद, पर्याय है उसको भी जानता है। और ज्ञान अपनेको उपादेयपने जानता है।

मुमुक्षुः- ... जानना हुआ?

समाधानः- हाँ। ज्ञान जानता है।

मुमुक्षुः- रागका ज्ञान तो दूसरे नंबरमें पडता है। क्योंकि शुद्धोपयोगमें तो ज्ञान त्रिकालीकी ओर चला जाता है। तो उपादेयपने स्वको ग्रहण, ज्ञानमें ज्ञेय करके जाननेमें स्वसन्मुखता ले लेता है। तो फिर रागको भी जानता है, ऐसा शास्त्रमें लिखाननमें आता है। तो फिर दूसरे समयके उपयोगके परसन्मुखताके कालका वर्णन है?

समाधानः- सविकल्प दशामें जानता है। निर्विकल्पतामें तो राग है नहीं। उपयोगात्मक तो नहीं है। ख्यालमें नहीं आता है राग, तो अबुद्धिपूर्वक हो जाता है। अबुद्धिपूर्वक हो जाता है।

मुमुक्षुः- अबुद्धिपूर्वक वह हो जाता है, मतलब ज्ञानीका उपयोग स्वको ज्ञेय करनेमें एकाग्र हो जाता है? जनानेमेंं आता नहीं इसलिये अबुद्धिपूर्वक हो जाता है। बुद्धिपूर्वकका तो होता नहीं।