Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

मुमुक्षुः- पर्याय स्वयं स्वतंत्रपने द्रव्यका आश्रय लेती हुयी प्रगट होती है। आप जो कहते हो कि उसे द्रव्यका आश्रय है। पर्याय प्रगट होती है स्वतंत्र, परन्तु वह द्रव्यका आश्रय लेती हुयी, अपने षटकारकसे परिणमती है। आपने जो कहा बराबर है। ऐसे ही है।

समाधानः- द्रव्यके आश्रयसे प्रगट होती है, स्वतंत्र। कारण द्रव्य त्रिकाल है और पर्याय क्षणिक है।

मुमुक्षुः- और परका आश्रय लेती हुयी प्रगट होती है, तबतक दशामें आस्रव, बन्ध है और जब ज्ञायकका आश्रय लेती हुयी प्रगट होती है, तब संवर, निर्जरा, मोक्ष प्रगट होते हैं।

समाधानः- संवर, निर्जरा, मोक्ष (प्रगट होते हैं)। परके आश्रय-से तो आस्रव होता है। निज शुद्धात्माके आश्रयसे शुद्ध पर्याय प्रगट हो तो संवर, निर्जरा है।

समाधानः- ... भीतरमें-से उसको-ज्ञायकदेवको ग्रहण करना। अनन्त गुणकी मूर्ति दिव्यमूर्ति चैतन्यदेव। उसको पहचानता है वह, जिनेन्द्र देव, गुरु सबको पीछानता है। जो भगवानके द्रव्य-गुण-पर्यायको पीछानता है, वह अपने द्रव्य-गुण-पर्यायको (पीछानता है)।

मुमुक्षुः- भगवानके द्रव्य-गुण-पर्यायकी पहचानमें तो अपने द्रव्य-गुण-पर्यायकी पहचान होवे तो वापस वही ... लग जायगी, स्वानुभकी। अनन्त बार भगवानके दर्शन करने गये, समवसरणमें गये, साक्षात सर्वज्ञदेवका भी किया, लेकिन अंतर दृष्टि और अनुभव बिना दर्शन नहीं हुआ।

समाधानः- अंतरमें भगवानका द्रव्य क्या है? क्या करता है? स्वानुभूति भगवानने वीतराग दशा प्रगट की, उसे पहचाना नहीं और बाहरसे दर्शन किया, इसलिये... जो यथार्थ पीछान करे तो अपने द्रव्य-गुण-पर्यायकी पीछान लेता है।

मुमुक्षुः- भगवानका तो परद्रव्य, गुण, पर्याय उनकी पहचान करनेमें तो उपयोगकी तो परसन्मुखता रहती है। फिर अपनी पहचानके लिये तो वापस स्वसन्मुखताका जोर हो।

समाधानः- दृष्टि तो अपने पर देनी है। परन्तु निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। इसलिये शास्त्रमें ऐसा कहा है। निमित्त और उपादानका सम्बन्ध है। भगवान तरफलक्ष्य