Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1487 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-५)

२५४

समाधानः- विकल्प भी जाननेमें आता है कि विकल्प आया, विकल्प आया, विकल्प आया। वैसे ज्ञान भी जाननेमें आता है। अरूपी है तो भी जाननेमें आता है कि यह ज्ञान.. ज्ञान.. ज्ञान है। अरूपी होवे तो भी ज्ञान जाननेमें आता है।

... प्रत्यक्ष कर लिया है। उनको द्रव्य-गुण-पर्याय, असंख्यात प्रदेश सब प्रत्यक्ष ज्ञान (गोचर) है। इसलिये उनकी वाणी निमित्त होती है। अपनेको तो उपादान-से होता है। उपादान अपना और भगवानकी वाणी निमित्त होती है। लक्ष्य अपनेको देना है। बाहर लक्ष्य करे कि भगवान ऐसे हैं, ऐसे हैं तो स्वसन्मुख दृष्टि नहीं होती। परन्तु भगवान है वैसा मैं हूँ, ऐसे दृष्टि अंतर्मुख करे तो स्वानुभूति होती है। स्वानुभूति, केवलज्ञान जैसा नहीं है कि केवलज्ञान सब प्रत्यक्ष जानता है, ऐसा। परन्तु उसका वेदन और आनन्द और उसके अनन्त गुण आदि वेदनमें आता है वह प्रत्यक्ष है। देखनेमें नहीं आता है कि ऐसे असंख्य प्रदेश है।

मुमुक्षुः- इतना दुर्लभ क्यों पड रहा है? आपके निकटमें, गुरुदेवश्रीके पासमें हम सब भाई-बहन बहुत समयसे (रहते हैं)।

समाधानः- पुरुषार्थ अपनेको करना पडता है। अनादिका अभ्यास है और बाहर उपयोग जाता है। दिशा पलट देनी है। दिशा पलटनी है। अपना स्वभाव है इसलिये सुलभ है। परन्तु अनादिका अभ्यास है इसलिये बाहर दौडता है। बार-बार दौडता है, अंतरमें नहीं जाता है। इसलिये दुर्लभ हो रहा है। ऐसे-ऐसे चक्कर खाता है। अपनी ओर नहीं जाता है, इसलिये दुर्लभ हो जाता है।

स्वभाव है इसलिये सुलभ है। जिसको होता है उसको अंतर्मुहूर्तमं होता है, नहीं होता है उसको काल लगता है। भगवानके समवसरणमें अंतर्मुहूर्तमें केवलज्ञान प्राप्त कर लेता है, कोई मुनि बन जाता है, किसीको सम्यग्दर्शन होता है। ऐसा अंतर्मुहूर्तमें भी होता है। किसीको अभ्यास करने-से होता है। यह तो पंचमकाल है। इसलिये दुर्लभता देखनेमें आती है। परन्तु स्वभाव है अपना तो पुरुषार्थ करने-से हो सकता है।

मुमुक्षुः- प्रश्न लिया है राजमलजी पाण्डे साहबने कि केवली भगवानके ज्ञानमें- नोंधमें कौन जीव कब मोक्ष जायगा। और ऐसा भी आया कि ढाई पुदगल परावर्तन काल जिसका शेष रह जायगा, उसके बाद वह सम्यग्दर्शन प्राप्त करेगा। तो फिर ऊधर जोर क्यों दिया गया? इधर स्वभाव पर पुरुषार्थका जोर होगा तो स्वानुभव होगा।

समाधानः- भगवानके ज्ञानमें, भगवानके केवलज्ञानका स्वभावको बताते हैं कि भगवानके ज्ञानमें सब है। कब, कौन-सा जीव मोक्ष जायगा। भगवान तो सब जानते हैं। भगवानके केवलज्ञानकी बात कही है कि केवलज्ञानमें तो सब आ गया है। परन्तु भगवानने ऐसा जाना है कि यह जीव पुरुषार्थ करने-से मोक्ष जायगा। बिन पुरुषार्थ-