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से मोक्ष जायगा ऐसा भगवानके ज्ञानमें नहीं आया है। भगवानके ज्ञानमें ऐसा आया है कि यह जीव इतने कालके बाद पुरुषार्थ करेगा और मोक्ष जायगा। पुरुषार्थ करेगा, आत्माकी स्वानुभूति करेगा और वीतरागता, मुनिदशा प्रगट करेगा और मोक्ष जायगा। पुरुषार्थ करने-से मोक्ष जायगा, ऐसा भगवानके ज्ञानमें आया है। बिन पुरुषार्थ-से मोक्ष जायगा ऐसा भगवानके ज्ञानमें नहीं आया है।
मुमुक्षुः- भगवानकी वाणी सुनते हैं और ऐसा जाननेमें आता है तो फिर अंतरमें- से यह तो नक्की हो जाता है कि हमारा जीव, केवली भगवानने निर्वाण होनेका और सम्यग्दर्शन होनेका समय देख लिया है, उस समय जरूर हमारा पुरुषार्थ स्वभावके सन्मुख होगा, होगा और होगा। तो फिर विश्वास आता है कि हम ऐसे शरणमें आ गये हैं, पूज्य माताजी अनुभूति देवीके, तो ऐसी बात सुननेको मिल रही है तो ये भी कोई उपादान हमारा जागृत है।
समाधानः- विश्वास आता है, लेकिन पुरुषार्थ तो अपनेको करना पडता है। जिसको अपूर्व रुचि होती है उसकी मुक्ति होती है। गुरुदेव कहते थे कि तत्प्रति प्रीति चित्तेन वार्ता पि ही श्रुताः। अंतर प्रीतिसे वार्ता भी सुनी, अंतर अपूर्वतासे (सुनी) तो भावि निर्वाण भाजनम। अपनी कैसी परिणति है वह स्वयं जान सकता है कि कैसे मेरी परिणति होती है, मुझे कैसी अपूर्वता लगती है, मेरी कैसी रुचि है, अपने आप अपना निर्णय कर सकता है कि मैं पुरुषार्थ करुँगा, ऐसा करुँगा।
मुमुक्षुः- अनुभूतिको विषय बनानेके लिये .. वेदनमें सुख आता है, ऐसा आत्मा भी ज्ञानमें आता है? ऐसा प्रश्न रह जाता है कि पर्याय जो है, भावमन है, वह स्थानविशेष- से ही आत्माको पकडता है या सर्वांग जो पूरे आत्म प्रदेशोंमें पर्याय व्याप्त है, तो पर्याय पूरा सर्वांग आत्माको पकडती है या स्थानविशेष-से पर्याय पकडती है?
समाधानः- यहाँ तो मन है न, इसलिये ऐसा कहते हैं कि यहाँ-से पकडता है। परन्तु वह पकडती तो है द्रव्यको न, अखण्ड द्रव्यको पकडती है, ग्रहण करती है। अखण्डको ग्रहण करती है। जहाँ-से पकडे वहाँ-से पकडना तो अपनेको है न।
मुमुक्षुः- ज्ञानपर्याय सर्वांग है न। असंख्य प्रदेशमें ज्ञानपर्याय भी है। ज्ञानपर्याय सर्वांगसे आत्माको ज्ञानमें पकडती है या भावमन स्थानविशेष-से ही पकडती है?
समाधानः- भावमन आया तो उसमें सब आ जाता है। भावमन मुख्य रहा तो उसमें सर्वांग आ जाता है। वह मुख्य रहता है तो एक तरफ-से नहीं पकडनेमें आता है, एक तरफ-से पकडनेमें आता है ऐसा नहीं होता। भावमन तो निमित्त बनता है और वहाँ-से ग्रहण करे तो सर्वांग पकडता है अपने आत्माको।
मुमुक्षुः- उसमें ऐसा कहना है इनका कि जैसे आँख-से देखते हैं तो किसी