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मुमुक्षुके जो-जो कार्य हो वह एक आत्माके लिये (होते हैं)। मात्र मोक्षकी अभिलाष, दूसरी कोई अभिलाषा नहीं है। मात्र मोक्ष अभिलाष। आत्माका स्वरूप मुझे कैसे प्रगट हो? मोक्ष यानी अंतरमें-से मुक्तिकी दशा (कैसे प्रगट हो)?
कषायकी उपशान्तता, मात्र मोक्ष अभिलाष। मात्र मोक्षकी अभिलाष। उसे ऐसे तीव्र.. विभावमें उतनी तन्मयता नहीं होती, विभावका रस मन्द पड गया हो, चैतन्य तरफके रसकी वृद्धि हुयी हो। चैतन्य तरफकी महिमा, रुचि अधिक होती है। एक मात्र मोक्षकी अभिलाषा-से, मोक्षके हेतु-से आत्माके हेतु-से, मुझे आत्माकी कैसे प्राप्ति हो? इस हेतु-से उसके प्रत्येक कार्य हो। उसकी जिज्ञासा, रुचि, लगनी सब आत्माके हेतु-से (होता है)। शास्त्र स्वाध्याय, वांचन, मनन मुझे आत्माकी कैसी प्राप्ति हो? (इस हेतुसे होता है)। "मात्र मोक्ष अभिलाष, भवे खेद अंतर दया, त्यां आत्मार्थ निवास।' जहाँ आत्मार्थका प्रयोजन है।
समाधानः- ... (गुरुदेवने) कितना स्पष्ट कर दिया है। कहीं किसीकी भूल न रहे ऐसा नहीं है। मार्ग सरल और सुगम कर दिया है। मात्र स्वयंको पुरुषार्थ करना बाकी रहता है। कोई क्रियामें रुके (बिना), शुभभाव, गुणभेद, पर्याय सब परसे दृष्टि (उठाकर) एक चैतन्य पर दृष्टि कर। फिर बीचमें सब आता है, ज्ञानमें जान। दृष्टि आत्मा पर करके जो पर्यायमें शुद्धि है, उस शुद्धिका पुरुषार्थ उसके साथ रहता है। पर्यायमें भेदज्ञान करके विशेष शुद्ध करने हेतु उसका प्रयत्न उसके साथ ही रहता है। वह करना है। पहले आत्माको पहचानना, उसका भेदज्ञान करना। भेदज्ञान करनेका प्रयत्न करना।
... अगाधता उसे मालूम नहीं है, वह स्वयं स्वानुभूतिमें जाय तो मालूम पडे। उपयोग बाहर हो तो कहाँ मालूम पडता है। दृष्टान्त कैसा देते हैं। "जे मार्गे सिंह संचर्या, रजो लागी तरणा'। घास नहीं चरेगा। चैतन्य जैसा सिंह, स्वयं ही जहाँ पलटा, उसके पुरुषार्थ-से सब कर्म, विभाव ढीले पड जाते हैं। (सिंह) जिस रास्ते पर चला हो, वह चला हो उसकी रज ऊडे, वहाँ बेचारा हिरन खडा नहीं रह सकता। ऐसा सिंहका पराक्रम होता है। सिंह जैसा आत्मा, पराक्रमी साधक आत्मा ऐसे महापुरुष जिस मार्ग पर चले, उस मार्ग पर कायरोंका काम नहीं है। दूसरे कायरोंका काम नहीं है। यह मार्ग वीरोंका है। जिस मार्ग पर चले, भगवान जिस मार्ग पर चले वह मार्ग तो वीरोंका है, कायरोंका काम नहीं है, ऐसा कहते थे। हिरन जैसे आप कोई खडे नहीं रह पाओगे, ऐसा कहते थे। अन्दर आत्मा.. महापुरुष जिस मार्ग पर चले, उस मार्ग पर तुम कायर खडे नहीं रह पाओेगे, ऐसा कहते हैं। जोरदार कहते थे। सुननेवाले एकदम...
महावीर भगवान ऊपर जाते हैं, गौतम स्वामी.. बहुत साल पहले ऐसा जैन प्रकाशमें