Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

२६२ किसीने छापा था। प्रभु! खडे रहो, ये मेरा कपडा इसमें अटक रहा है। ऐसे सब श्वेतांबरमें (कथन आते हैं)। अरे..! गुलाममार्गी! ऐसा कहे। उसमें ऐसा आता है। ये तेरा मार्ग नहीं है। तेरा कपडा अटक रहा है, कपडेको छोड। ऐसा सब आता था। ... छोड सब। विकल्प नहीं उत्पन्न होता है। हम आज ही धर्म अंगीकार करेंगे। ऐसा जोरदार। आज ही अंगीकार करेंगे। असरकारक। सब डोल उठे, पूरी सभा डोले। उतना भाववाही। तीर्थंकरका द्रव्य, उनकी वाणी ऐसी, अन्दर भाव ऐसे। भाव और वाणी, सब। ...

आहार लेने निकलते तो ऐसे लगते, सिंह जैसे। सब काँपे। पधारो, पधारो भावसे कहे। ऐसे महापुरुष हमारे आँगनमें पधारे, हमारा महाभाग्य। लेकिन थोडा फेरफार हो तो सिंहकी भाँति चले जाते, सामने तक नहीं देखते थे। सब ऐसे देखते रह जाते, और आँखमें-से आँसु चले जाय, सामने कौन देखता है? ऐसे थे। आहार लेने निकलते। थोडा फेरफार हो जाय, मालूम पडे कि मेरे लिये आपने बनाया है, खडा कौन रहता है? क्यों बनाया, इतना भी पूछने खडे नहीं रहते। बिजलीका चमकारा हो, वैसे चले जाते। आज अपने आँगनमें कानजीस्वामी आकर वापस चले गये। कितना दुःख हो। हूबहू साधु दिखे, स्थानकवासी संप्रदायके। एक नमूना, साधुका नमूना दिखता हो वैसे दिखते थे।

समाधानः- ... नक्की स्वयंको करना है। यह शरीर तो प्रत्यक्ष जड दिखता है, जो कुछ जानता नहीं। अन्दर विभाव होता है, उसे भी जाननेवाला तो स्वयं है। विभाव जितने हो वह सब चले जाते हैं। वह खडे नहीं रहते। सब विभाव, विकल्प चले जाते हैं और जाननेवाला खडा रहता है। वह जाननेवाला जो है, उस जाननेवालेको जानना। वास्तवमें तो वही करना है। उसीकी महिमा करनी, उसीकी प्रतीति करनी। मैं भिन्न, मेरा स्वभावमें ही अनन्त शक्ति और अनन्त महिमासे मैं भरा हूँ। विभाव तो निःसार-सारभूत नहीं है। विचार करे तो वह आकुलतारूप है, दुःखरूप है। वह कहीं सुख नहीं है और सुखका कारण भी नहीं है। ऐसे स्वयं नक्की करना चाहिये।

पानी स्वभावसे शीतल है, परन्तु अग्निके निमित्त-से उष्णता हो तो वह उष्णता पानीका स्वभाव नहीं है। स्वभाव-से शीतल है। ऐसे आत्मा अन्दर शीतलतासे भरा हुआ, ज्ञान और आनन्दसे भरा है, ऐसा नक्की करना चाहिये। यह विभाव परिणति मेरे स्वरूप-स्वभाव-ओरकी नहीं है। निमित्त है, उस निमित्तके कारण पुरुषार्थकी मन्दतासे होती है। कोई पर करवाता नहीं, परन्तु अपने पुरुषार्थकी मन्दतासे होता है, इसलिये मैं उससे कैसे भिन्न होऊँ? इस प्रकार पुरुषार्थ करके स्वयं ही अपनी ओर मुडना है, कोई मोडता नहीं है।

समाधानः- ... अनन्त तीर्थंकर मोक्ष गये, इसी मार्ग-से गये हैं। आत्मस्वभावको